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________________ १५६ प्रेमी-अभिनदन-प्रथ उदाहरण-"प्राज इस यौवन के माधवी कब्ज में कोकिल बोल रहा।" ('चन्द्रगुप्त' 'प्रसाद') वीरविम्बित ३२ मात्रामो का छन्द '('वीर' मे एक लघु वढा देने से यह छन्द वनता है) लक्षण-"चौपाई युग मिला मनोहर, कविवर वीर बिलम्वित गाओ।" उदाहरण-कॉप भूधर सागर कापे, तारक-लोक खमण्डल का , यह विराट भूमण्डल कापे, रविमण्डल आखण्डल कापे, परिवर्तन काक्रातिप्रलय का,गंज उठेसवोर घोर स्वर, देख दृष्टि हुकार श्रवणकर अन्ध गन्ध वह मण्डल कांपे ! ('प्रलयवीणा') (यह छन्द उपचित्रा' या 'मधुकर' का भी दुगुना होता है।) मुक्ताहार ३२ मात्रामो का छन्द । लक्षण-सजा दो शोभामय 'शृगार' उसे पहनायो मुक्ताहार।' ('शृगार' छन्द का दुगुना) उदाहरण-हिमालय के आंगन में उसे प्रथम किरणो का ये उपहार। उषा ने हंस अभिनन्दन किया और पहनाया हीरकहार । जगे हम लगे जगाने विश्व लोक में फैला फिर पालोक। व्योम-सम-पुञ्ज हुआ तब नष्ट अखिल ससति हो उठी अशोक । ('स्कन्दगुप्त' 'प्रसाद')' इस प्रकार शत-सहस्र नये-नये छन्दो के नूपुर हिन्दी-भारती ने अपने अगप्रत्यग में सजाये है, जिनके रुनुन-सुनन से हिन्दी-प्रेमियो की श्रुतियां रसमग्न हो रही है। वनस्थली - - -
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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