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________________ · शृगारताण्डव : २८ मात्रात्रों का छन्द शृगार और ताण्डव के योग से यह छन्द वनता है हिन्दी कविता के कला-मण्डप 1 शृगार (पादाकुलक का एक भेद श्रादि ३+२, अन्त = ३ • सजत सव ग्वाल वधू शृगार । १२ ताण्डव : तरणि 'ताण्डव' में गोल (१२ मात्राएँ, गुरुलघु अन्त में) उदाहरण - नारिका सी तुम दिव्याकार, चन्द्रिका की भङ्कार, प्रेम-पखो में उड़ अनिवार, अप्सरा-सी लघुभार स्वर्ग से उतरी क्या सोद्गार, प्रणय-हसिनि सुकुमार ? हृदय-सर में करने श्रभितार, रजत-रति, स्वर्ण-विहार 1 C माघवी कोकिल - ( पीछे देखिए ) धरणी - त्रमुगति वरणी-चडिका ( १३ मात्राएँ ) इसका दूसरा नाम 'चडिका' भी है । दोनो के योग से 'माववी' बनेगा । उदाहरण १ वैजयन्ती ३० मात्राग्री का छन्द २६ मात्राओ का छन्द लक्षण - 'कोकिल-वरणी मय कर प्रियवर गायो मधुमय माधवी ।' गूँज रहा सारे श्रम्बर में तेरा तीखा गान है ! रंग-विरगे श्रम् - स्मितिमय श्राशा जिसकी तान है ! हम दोनों के वृहद् प्रदर्शन से द्युत व्योम-वितान है। स्पंदित प्राण वायु को करती तेरी मेरी तान है | " 1 'छन्दप्रभाकर, पृ० ५३ शृङ्गार . ‘सजत सव ग्वालवधू श्रृंगार ।' गोपी कला तिथि, गा गा प्रिय गोपी ('गुजन') उदाहरण - "ब्रह्माण्ड में सब ओर जिसकी है फहरती वैजयन्ती ।" शृगारगोपिका ३१ मात्राओ का छन्द ( शृगार -+- गोपी) S लक्षण - शृगार, विद्या यतिमयी हरिगीतिका-गा, वैजयन्ती । ( १६, १४ पर यति, हरिगीतिका + 5) ( १५ मात्राएँ अन्त में दो गुरु) ( ' गीताजलि' - अनुवाद ) १५५
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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