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________________ प्रेमी-अभिनदन-प्रथ "भय और समुचित आदर ये दोनो एक दूसरे से पृथक् हैं । भय का श्रकुर दिल की कमजोरी से फवकता है, जब हम दूसरे के रोव में श्राय भारे डर के हाँ में हाँ मिलावें और जी से यही समझें कि होचा है। काट ही लेगा इससे इसकी भरपूर पूजा-सम्मान करते जायें तभी भला है तो यह समुचित श्रादर की हद्द के बाहर निकल जाना हुआ, ( मई १८८०, पृ० ४) 21 पर आगे बढकर सिकन्दर - पोरस का उल्लेख कर लेखके जा पहुँचा "साहवान अँगरेज और हमारे अमीर श्रीर रियासतदारों की मुलाकात" पर T पर क्या मजाल जो चुहल और साहित्य-स्पर्श छूट जाय । "घडी घडी घडियाल पुकारै, कौन घडी धों कैसी श्रावे", यह शीर्षक है। इसमे समय की परिवर्तन-शीलता पर कोई विशेष व्यापक निवन्ध नही, लार्ड लिटन के अनायास ही पदत्याग करने की घटना का मनोरंजक वर्णन है १२६ "हमारे श्रीमान लार्ड लिटन कहाँ इस विचार में थे कि शिमला की शीतल वायु में चलकर स्वर्गसुख का अनुभव करेंगे और गवर्नरी के वो एक वर्ष जो बाक़ी रह गये है उनमें अपने दीक्षा गुरु डितरेली के बताये मन्त्र को सिद्ध कर जहाँ तक हो सकेगा दो एक और नये ऐक्ट पास कर निर्जीव हिन्दुस्तान की रही-सही कमर तोड़-फोड तब विलायत जायेंगे कहाँ एक वारगी लिबरल लोगो के विजय का ऐसा तार आ गिरा जिसने सब कुतार कर दिया " ( मई १८८०, पृ० १६ ) इस प्रकार एक शीर्षक है 'एक अनोखे ढंग की तहरीर उक्लैदिस' यह एक परिहारा है, जिसे श्राज कल 'पैरोडी' कहा जाता है । उक्लैदिस, ज्यामेट्रो की पैरोडी पर सरकार की नौकरी सम्वन्धी नीति का परिहास किया गया है । आज भी इससे मनोरजन हो सकता है "मिस्टर एडिटर रामराम प्रोफेसर उक्लेक्सि के नगरदादा ने सातऍ सरग से यह अनोखे ढङ्ग को युक्लिद तुम्हारे पास भेजा है इसे अपने पत्र में स्थान है श्राशा है ससार भर को इसके प्रचार से चिरवाधित कीजिएगा । परिभाषा सूत्र १ गवर्नमेंट को इखतियार है कि सरकारी नौकरी की सीमा जहाँ तक चाहे वहाँ तक महदूद कर सकती है ॥ २ उस सीमा का एक छोर जिसका नाम सिविलियन है जहाँ तक चाहो वढ भी जाय तो कुछ चिन्ता नहीं पर दूसरी सीमा सरकारी हिन्दुस्तानी नौकर वाली केवल २०० रुपये के भीतर रहे और उन्ही के वास्ते रिसर्वड की गई जो अनकवेनेण्टेड केरानी या यूरेशियन है || ३ उस सीमाबद्ध रेखा पर किसी नुखते से कोई दायरा हिन्दुस्तानियो के लिए गवर्नमेण्ट सरवेंट का नहीं खींचा जा सकता पहले अध्याय का ४९वाँ साध्य एक ऐसी रेखा जिसका एक छोर सीमाबद्ध अर्थात् महदूद नहीं किया गया और दूसरे के लिए भाँत - भाँत को क़ैद है उस पर जो लम्ब खींचा जायगा वह सम विषम दो कोण पैदा करेगा ॥ (मार्च १८८०, पृ० २३) 'हिन्दी- प्रदीप' की प्रधान प्रवृत्ति राजनीति की ओर अथवा राजकीय कार्यों की आलोचना की ओर थी । वह उम काल की जन-जाग्रति का प्रवल समर्थक था और सरकारी कामो की पर्याप्त उद्दड और तीखी समालोचना करता था । किन्तु उसको शैली चटपटी और अन्योक्ति जैसी थी। किसी अन्य विषय की वातें करते-करते और साथ ही इघर-उघर के विविध वृत्त देकर उनके साथ ही उदाहरणार्थं श्रथवा प्रसगानुकूल राजकीय कृत्य का भी उल्लेख कर दिया जाता था ।
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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