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________________ ८० do 3ds 56 35 'ब्रह्मविलास में चेतन ध्यान कमान ले, मारे क्षायक वान ॥ मोह मूढ छिपतो फिरै, ज्ञान करै घमसान ॥ २५० ॥ देश विरत पुरमें चढ्यो, चेतन दल परचंड | आज्ञा श्रीजिनदेवकी, पालै सदा अखंड ॥ २५१ ॥ सोरठा. मोह भयो बलहीन, छिप्यो छिप्यो जित तित रहै ॥ चेतन महा प्रवीन, सावधान है चलत है ॥ २५२ ॥ अप्रमत्तपुरमाहिं, चेतन आयो बिधिसहित || तहां न जोर बसाहिं, मोह मान भिष्टित भयो । २५३ ।। चेतन करि तहँ ध्यान, सुभट तीने औरहि हरे ॥ . पुनि चारित्र प्रमान, करैन किये सप्तम पुरहि ॥ २५४ ॥ दोहा. तजी अहार विहारविधि, आसन दृढ ठहराय ॥ छिन छिन सुख थिरता बढै, यों बोलै जिनराय ॥ २५५ ॥ अबहिं अपूर्वे करनमें, आयो चेतनराय ॥ कियो कैरन दूजो जहाँ, घिरता है अधिकाय ॥ २५६ ॥ नैवमें पुरमें आयकें, तृतिय करन करि लेय ॥ हरिके सुभट छतीस तह, आर्गेकों पग देय ॥ २५७ ॥ आयो दशमें पुरविषै, चेतन महा सचेत ॥ सुभट एक इतहू हरयो, तबै ज्ञान सुधि देत ॥ २५८ ॥ (१) सातवें गुणस्थानमें । (२) नरक, तियंच देव आयु । (३) अधःप्रवर्तकरण प्रारंभ किया । (४) आठवें गुणस्थानमें । (५) दूजा अपूर्वकरन प्रारंभ किया । (६) नवमें अनित्रतकरननामक गुणस्थानमें तीसरा करन प्रारंभ किया । ( ७ ) दर्शनावरणीकी २ मोहिनीकी ४ नामकर्मकी ३० इसप्रकार छत्तीस प्रकृतियें । ( ८ ) सूक्ष्म लोभ । Pooped de do dedo ge vah saah 50 advance as gavaban Guan vasgaoo / a ste
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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