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________________ -- PRupasanaplasses/MARGanapanaNGEGORIDDES/RGanasamachaodawantwan-17 REPENDERWEAPOORPOSROPRPoppRPAN चेतनकर्मचरित्र. को कहै कथा निगोदकी,मन ताके दुखको पार, चेतमनभाई रे॥ काल अनंत तोतेलहे,मन दुःखअनंती वार,चेतमनभाईरे॥३९॥ है देव आयुपुनितें धरयो,मन० तामें दुःख अनेक,चेतमनभाई रे॥ लोभमहासुखहैजहां मन प्रगट विरह दुख होय,चेतमनभाईरे४०१ , दुःख महा बहुमानसी मन० देखे अन्य विभूति, चेतमनभाई रे ॥ तिर्यक् गतिमें तू फिरयोमन० संकट लहे अनेक,चेतमनभाईरे४१५ है अविवेकी कारज किये, मन० वांधे पाप अनेक, चेतमनभाईरे॥ नरदेही पाई कहूं, मनसेये पंच मिथ्यात,चेतमनभाई रे॥४२॥ है कहुं कारज को तो सरयो, मन जनम गमायो व्यर्थ, चेतमनभा० है भ्रमत भ्रमत संसारमें मन कबहुँन पायो सुक्ख,चेतमनभा०४३ ४ अवके जो तोको भई, मन० कछु आतम परतीत, चेतमनभा॥ धारिलेहुं निजसंपदा,मन दर्शन ज्ञान चरित्र,चेतमनभाईरे२४४ . है और सकल भ्रमजालहै, मन तत्त्व इहै निज काज, चेतमनभा०॥ सुखअनंत या वसे, मनःनिज आतमअवधार,चेतमनभा०॥४५॥ सिद्ध समान सुछंद है, मन निश्चै दृष्टि निहारि, चेतमनभा०॥ इहिविधि आतम संपदा, मन लहिकरि आतमकाज चेतमनभा० . दोहा. इहि विधि भाव सुभाव ते, पायो परमानंद ॥ सम्यक दरश सुहावनो, लह्यो सु आतमचंद ॥२४७॥ क्षायक भाव भये प्रगट, महा सुभट वलवंत ॥ कीन्हों जिहँ छिन एकमें, सुभट सातको अंत ॥२४॥ मोह तवै निर्वल भयो, अवके कछु विपरीत ॥ मेरे सुभट भये शिथल,लागहिं उनकी जीत॥२४॥ (दर्शन मोहकी प्रकृति और अनंतानुबंधी क्रोध मान माया लोभ । (२) क्षय । EWonsomnamaonomoso9000/peoponapost ROSPARoo00000000000000000000000000canARAapoooooooo
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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