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________________ eviantaran antaranea RWAweenwepenupenSMSAROmanpCATORS चेतनकर्मचरित्र. सुमन खबर सब जियको दई । एक बात सुन हो! प्रभु नई ॥ ए मोह रचे फंदा बहु जाल । तुम जिन भूलहु दीन दयाल॥१९॥ अवके जो पकरेंगो तोहि । तो फिर दोप न दीजो मोहि ॥ मैं सव खवर नाथ तुम दई । जैसी कछू हकीकत भई ॥ १९७ ॥ तव हंस इहपुरको पंथ । चल्यो उलंघि महा निग्रंथ ॥ अप्रमत्तपुरकी लइ राह । जिहँ मारग पंथी बहु साह ॥ १९८ ॥ ह रोके आय जु प्रत्याख्यान । जुद्ध कर विन देहुं न जान ॥ चेतन कहे जाहु शठ दूर । छिनमें मारि करूं चकचूर ॥१९॥ तवहिं जोर नाना विधिकरै । चेतन सन्मुख हैके लरै ॥ . चेतन ध्यानधनुप कर लेय । मूर्छित कर आगें पग देय ॥ २००॥ गिरयो जु प्रत्याख्यान कुमार। चेतन पहुँच्यो सप्तम द्वारं ॥ मोह कहै देखहु रे जोर । यह तो किये जातु है भोर ।। २०१॥ पकरहु सुभट दौरि इह जाहिं । ल्यावहु पकरि बेग मोहि पाहि॥ चल्यो धर्मराग वलवीर । विकथा वचन दूसरो धीर ॥ २०२॥ निद्रा विषय कषाय सुपंच । पकरि हंस ले आये घंचें ॥ चेतन देखें यह कहा भई । मोहि पकरि ले आये दई ॥ २०३॥ है यह परमत्त देश है सही । मोकों सुमन अगाउ कही ।। अव कछु ऐसो कीजे काज ।.जासों होय अप्रमत राज ॥२०॥ मूलगुण धरै । बारह भेद तपस्या करै । सह परीसह वीसरु दोय । उभय दया पालै मुनि सोय ॥२०५॥ इहिविधि लहे अप्रमत आय । तवै मोह निज दास पठाय ॥ ३ (१) छहे गुणस्थानको छोडकर। (२) सातवें गुणस्थानकी राह पकड़ी। (३) प्रत्याख्यानावरणी क्रोधं मान माया लोम ये चार कपायें। (४) उपसमरूप करके। (५) प्रत्याख्यानावणी उपशम होगया । (६) सातवें गुणस्थानमें । (७) गला। Wom/en/MPPORApp/neNepal naprawasacchapoooopaapaapapeop s ornapooG00000owan - awa
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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