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________________ RED PORO/ApwpopONSCIEmperpeneAWAMIER ब्रह्मविलासमें .. ... ......aamanammarmerammm.r रूप सिद्धखेतमें विराजमान, तैसो ही निहारि निज आपुरस रसेह Sraddress/dporon-compoornaporanorancorporoornaroorchaeocomoto दसण णाणपहाणे, वीरिय चारित्त वरतवायारे ॥ हैं. अप्पं परं च जुजइ, सो आयरिओ मुणी ज्झेओ॥१२॥ है पंच जु आचारजके जानत विचारभले, ताहीआचारजजूको नाम गुणधारी है। आपहू प्रवत्तै इह मारग दयाल रूप, और इ प्रवर्तावनको परउपकारी है । दरसनाचार ज्ञानाचारवीर्याचार चर्णाचार तपाचारमें विशेष बुद्धि भारी है। इन्हें आदि और है गुण केतेई विराज रहे, ऐसे आचारज प्रति वंदना हमारी है ॥५२॥ है जो रयणत्तयजुत्तो णिचं धम्मोवएसणे हिरदो॥ सो उवझाओ अप्पा जदिवरवसहो णमो तस्स ॥ मात्रिक कवित्त, सम्यक दरश ज्ञान पुनि सम्यक,अरु सम्यक चारित कहिये। ये रतनत्रय गुण करि राजत, द्वादश अँग भेदी लहिये । सदा देत उपदेश धरमको, उपाध्याय इह गुण गहिये। मुनि गणमाहिं प्रधान पुरुष है, ता प्रति वंदन सरदहिये ।।५३ है दसण णाणसमग्गं, मग्गं मोक्खस्स जो हु चारित्तं। साधयदि णिच्च सुद्धं, साहू स मुणी णमो तस्स ॥ ५४॥ दोहा. . सम्यक दर्शन संजुगत, अरु सम्यक जहँ ज्ञान । तिहँ करि पूरण जो भरयो, सो चारित परमान। चारित मारग मोक्षको, सर्वकाल सुध होय । तिहँ साधत जो साधु मुनि, तिनप्रति वंदत लोय ॥ ५४॥ Woporenaarbonp/ema A NDRPoemapeecoronawikram RSeniorewasenavanapresentemprapterenapraswanavarsnawansranepasserelaterations
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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