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________________ . ... . .... . NCH Orbidiphotomarawadrasi RANDEndandloPondomorpRGONDA .............. द्रव्यसंग्रह.. णमोलोए सव्वसाहणं । नवमिलि पैतिस अक्षर गुणं । । शोलह अक्षरको विस्तार । सुनहु भविक परमागमसार ॥ 'अरहंत सिद्ध आचारजनामा उपाध्यायनित साधु प्रणाम। 'अरहंत सिद्ध छै अक्षर जाना असिआउ सा'पंच प्रधान। चतु अक्षर 'अरहंत' चितारि। द्वै अक्षर श्री सिद्ध' निहारि। इक अक्षर 'ओं' सब ही धरै । इनको सुमरन भविजन करै।। ये सवही परमेष्टि लखेय । अन्य सकलगुरुमुंख सुनलेय ।। दोहा. इह विधि पंच परमपदहि, भविजन नितप्रति ध्याय ॥ इनके गुणहि चितारतें प्रगट इन्ही सम थाय ॥ ४९ ॥ ण चउघायकम्मो, सण सुहणाणवीरियमइओ । सुहृदेहत्थो अप्पा, सुद्धो अरिहो विचिंतिजो ॥ ५० ॥ EtorebaprabarboorboorboorboorhoodamadrasapnaproposordprenoNDIDATORoads - कवित्त. FROORDPOpandBapparwahasranA ऐसें निज आतम अर्हतको विचारियतु, चारकर्म नष्ट गये। १ ताहीत अफंद है। ज्ञानदर्शवरणीय मोहिनी सु अंतराय, येही चारि कर्म गये चेतन सुछंद है ।। दृष्टिज्ञान सुख वीर्य अनंत चतुष्टै युक्त, आतमा विराजमान मानों पूर्णचंद है । परमोदारीक देह वसै राग तजे जेह, दोपनित रह्यो सुद्ध ज्ञानको दिनंद है ॥ ५० ॥ गट्टकम्मदेहो, लोयालोयस्स जाणवो दवा ॥ पुरिसायारो अप्पा, सिद्धो ज्झायेह लोयसिहरत्यो ॥२१॥ है ऐसे यह आतमाको सिद्ध कह ध्याइयतु, आकर्म देहादिक । दोप जाके नसे हैं। लोक ओ अलोकको जु ज्ञानवन्त दृष्टिमाहिं, है जाकी स्वच्छताईमें सुभाव सब लसे हैं।।अनंतगुण प्रगट अनंतका लपरजंत, थिति है अडोल जाकी पुरुपाकार बसे है।ऐसो है स्वNonprappamorpo/ODAPOORPORARIANPanoos
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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