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________________ ब्रह्मविलासमै तिक्काले चदुपाणा, इंदिय वलमाउ आणपाणा य । ववहारा सो जीवो, णिच्चयणयदो दु चैर्दणा जस्स ॥३॥ तिहुंकाल चार प्राण धेरै जगवासी जीव, इन्द्रीवल आयु ओ उस्वास स्वास जानिये । एई चार प्राण धेरै सातामान जीवो कर, तातैं जीव नांव को नैव्योहार मानिये ॥ निचैनय चेतना विराज रही शुद्ध जाके, चेतना विरुद सदा याही प्रमानिये | अतीत अनागत सुवर्तमान भैया'निज, ज्ञानप्रान शास्त्रतो स्वभाव यों बखानिये ॥ ३ ॥ ३४ उपओगो दुवियप्पो, दंसण णाणं च दंसणं चदुधा 1 चक्खु अचक्खू ओही, दंसणमथ केवलं पेयं ॥ ४ ॥ जीवके चेतना परिणाम शुद्ध राजत है, ताके भेद दोय जिन ग्रन्थनिमें गाइये । एक है सु चेतना कहावै शुद्ध दर्शन, दूजी ज्ञान चेतना लखेतैं ब्रह्म पाइये || देखिवेके भेद चारि लीजिये हृदै विचारि, चक्षु ओ अचक्षु औधि केवल सुध्याइये । येही चार भेद कहे दर्शन देखनेके, जाके परकाश लोकालोक हू लखाइये ॥ ४ ॥ Sapan णाणं अठ्ठवियप्पं, मदिसुदिओही अणाणणाणाणि । मणपज्जय केवलमवि, पचक्खपरोक्खभेयं च ॥ ५ ॥ मइ सुइ परोदेख णाणं, ओही मण होइ वियल पंचक्खं । केवलणाणं च तहा, अणोवमं होइ सयलपञ्चक्खम् ॥५॥ ज्ञानके जु भेद आठ ताके नाम भिन्न सुनो, कुमति कुश्रुति अवधि लों विशेखिये । सुमति सुश्रुति सु औधि मनपर्जय और, के ( १ ) चेयणा ऐसा भी पाठ हैं । ( २ ) परोह ऐसा भी पाठ है । ॐ
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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