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________________ 2191 GRANDEURÁDANÁLAÐGANGPANESETIAACARANTANTVAN sa इव्यसंग्रह. अथ द्रव्यसंग्रह मूलसहित कवित्तबन्ध लिख्यते । मंगलाचरण. आर्याछंद. जीवमजीवं दव्वं, जिणवरवसहेण जेण णिहिं | देविंदविददं वंदे तं सव्वदा सिरसा ॥ १ ॥ छप्पयचंद. सकल कर्मक्षय करन, तरन तारन शिव नायक । ज्ञान दिवाकर प्रगट, सर्व जीवहिं सुखदायक ॥ परम पूज्य गणधरहु, ताहि पूजित - जिनराजे । देवनिकं पति इन्द्र वृंद, चंद्रित छवि छाजे ॥ इह विधि अनेक गुणनिधिसहित, वृषभनाथ मिथ्यात हर । तमु चरण कमल वंदित भविक, भावसहित नित जोर कर || १ || दोहा. तिहँ जिन जीव अजीवके, लखे सगुण परजाय । कहे प्रगट सब ग्रंथम, भेदभाव समुझाय ॥ १ ॥ जीवो उवओगमओ, अमुत्ति कत्ता सदेहपरिमाणो । भुत्ता संसारत्थो, सिद्धो सो बिस्ससोडुगई ॥ २ ॥ कवित. जीव हैं सुज्ञानमयी चेतना स्वभाव धरें, जानिवो औ देखियो अनादिनिधि पास है । अमूर्त्तिक सदा रहे और सोन रूप है, निचैन प्रवान जाक आतम विलास हैं | व्योहारनय कर्त्ता है देहके प्रमान मान, भुक्ता सुख दुःखनिको जगमें निवास है । शुद्ध नैं विलोके सिद्ध करम कलंक विना, ऊर्द्धको स्वभाव जाको लोक अग्रवास हैं ॥ २ ॥ (१) 'ओसा' ऐसा भी पाठ है। 6 53 of 557-58 de de de de de de de u STARPTARTAR aastat T
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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