SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ fast as se as de age and date dan op de de de de de de de a da spate and a dead e speth soon rep so as to मनबत्तीसी. २६३. विप भक्षनतें दुख बढे, जानै सब संसार ॥ तवह मन समझे नहीं, विपयन सेती प्यार ॥ १७ ॥ छहों खंडके भूप सव, जीत किये निजदास ॥ जो मन एक न जीतियो, सह्रै नर्क दुख वास ॥ १८ ॥ छाँड़ तनकसी झुंपरी, और लंगोटी साज ॥ सुख अनंत विलसंत है, मन जीतै मुनिराज ॥ १९ ॥ कोटि सताइस अपछरा, वत्तिस लक्ष विमान ॥ मन जीते विन इन्द्र ह, सहै गर्भ दुख आन ॥ २० ॥ छाँड़ घरहि बनमें बसै, मन जीतनके काज ॥ धाम ॥ २२ ॥ तो देखो मुनिराजजू, विलसत शिवपुर राज ॥ २१ ॥. अरिजीतनको जोर है, मन जीतनको खाम ॥ देख त्रिखंडी भूपको, परत नर्कके मन जीतें जे जगतमें, ते सुख लहै अनंत ॥ यह तो बात प्रसिद्ध है, देख्यो श्रीभगवंत ॥ २३ ॥ देख वडे आरंभसों, चक्रवर्ति जग माहिं ॥ फेरत ही मन एकको, चले मुक्तिमें जांहिं ॥ २४ ॥ वाहिज परिगह रंच नहिं, मनमें घरै विकार ॥ तंदुल मच्छ निहारिये, पड़े नरक भावनहीतें बंध है, निरधार ॥ २५ ॥ मुक्ति ॥ भावनहीतें जो जानै गति भावकी, सो जाने यह युक्ति ॥ २६ ॥ परिग्रह कारन मोहको, इम भाख्यो भगवान ॥ जिह जिय मोह निवारियो, तिहिं पायो कल्यान ॥ २७ ॥ अरिल... कहा भयो बहु फिरे तीर्थ अड़सडका ॥ कहा होय तन दहे, रैन दिन कडका ॥ Best ॐ ॐ ॐ aniceanic dock da ॐॐॐॐॐॐॐॐ ॐ ॐ ४
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy