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________________ •ww...more w AAMA DD/appy PREVEAPanwerupanpanwRB0RRPAPARODARA मनवत्तीसी. कुगुरु कुगतिक सारथी, मूढनको. ले जाहिं ॥ हिंसाके उपदेश दै, धर्म कहै तिहमाहि ॥ २१ ॥ दक्षनके हित दक्षसों, शठकै शठसों प्रीत ॥ अलि अम्बुजपै देखिये, दर्दुर कईम मीत ॥ २२ ॥ परभावनसों विरचके, निज भावनको ध्यान ॥ जो इह मारग अनुसरै, सो पावै निर्वान ॥२३॥ वहुत वात कहिये कहा, थोरे ही दृष्टन्त ।। जो पावै निज आतमा, सो पावै भव अन्त ॥ २४ ॥ 'भैया' निज पाये विना, भ्रमन अनंते कीन ॥ तेई तरे संसारमें, जिहँ आपो लखि लीन ॥२५॥ एक सात पण दोय है, अश्विन दिशा प्रकास ॥. यह दृष्टांत पचीसिका, कही भगोतीदास ॥२६॥ इति दृष्टान्तपचीसी Doa Eenacisenis/navanaranaanasanasapanaprapannavanamaAGRenaduvansenapless अथ मनबत्तीसी लिख्यते। दोहा. दर्शन ज्ञान चरित्र जिह, सुख अनंत प्रतिभास ॥ वंदत हो तिहँ देवको, मन धर परम हुलास ॥१॥ मनसों वंदन कीजिये, मनसों धरिये. ध्यान ॥ मनसों आतम तत्त्वको, लखिये सिद्ध समान ॥२॥ मन खोजत है ब्रह्मको, मन सव करै विचार ॥ मनविन आतम.तत्त्वको, करै कौन निरधार ॥३॥ मनसम खोजी जगतमें, और दूसरो कौन ॥ खोज गहै शिवनाथको, लहै सुखनको ..भौन ॥४॥ (१) दशमी. HARIDAPERRAHAPOOR P ORApp a vacOHGOOGGOOGolgapotaopan - -- - - - - - - -
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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