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________________ 3 Karopdoompanoramaprao0700-orensooconomraoorancorpooooooooooooooo ROOPORARWARRRRRORSCOPampoomanOB १२३६ ब्रह्मविलासमें तब निमित्त हारयो तहाँ, अव नहिं जोर वसाय ॥ उपादान शिव लोकमें, पहुँच्यो कर्म खपाय ॥ ४० ॥ उपादान जीत्यो तहाँ, निजवल कर परकास ॥ .सुख अनंत ध्रुव भोगवै, अंत न वरन्यो तास ॥४१॥ उपादान अरु निमित्त ये, सव जीवनपै वीर ॥ जो निजशक्ति संभारहीं, सो पहुचें भवतीर ॥४२॥ भैया महिमा ब्रह्मकी, कैसे वरनी जाय ॥ · :वचनअगोचर वस्तु है, कहिवो वचन बनाय ।। ४३ ॥ उपादान अरु निमितको, सरस बन्यो संवाद ॥ C. समदृष्टीको सुगम है, मूरखको वकवाद ।। ४४ ॥ ___ जो जानै गुण ब्रह्मके; · सो जाने यह भेद ॥ .: साल जिनागमसों मिले, तो मत कीज्यो खेद ॥४५॥ नगर आगरो. अग्र है, जैनी जनको वास ।। · तिहँ थानक रचनाकरी, 'भैया' स्वमति प्रकास ॥ ४६ ॥ संवत विक्रम भूप को, 'सत्रहसै पंचास ॥ फाल्गुण पहिले पक्षमें, दशों दिशा परकाश ॥४७॥ . इति उपादाननिमित्तसंवाद । FeapwapcosamanawanprasatbahuvanvanawanwaanawreniwanapanonwanpOS अथ चतुर्विंशतितीर्थंकरजयमाला लिख्यते। . दोहा. वीस चार जगदीशको, बंदों शीस नवाय ।। . कहूं तास जयमालिका, नामकथन गुण. गाय ॥१॥ . पद्धरिछन्द..(१६ मात्रा) ए जय जय प्रभु ऋषभ जिनेन्द्रदेव । जय जय त्रिभुवनपति MORRORROWAPOORDPREPARAPARIDWAR
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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