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________________ PEOPPOmpropempe ra/ EDIGENER, ब्रह्मविलासे Rameer PALA wamirmwapraptopponsoonporensoooooooooooooooo देखि राय चिदानंद,सुखको निधान याकै मायान जगति है । जैसोई शिवखेत तैसो देहमें विराजमान, ऐसो लखि सुमति स्वभाव है। है पगति है ॥ ३४ ॥ मात्रिक कवित्त. जवते अपनोजी आपु लख्यो, तवतें जुमिटीदुविधा मनकी। एयों शीतल चित्त भयो तवही सब, छांडदई ममता तनकी ॥ चिंतामणि जव प्रगट्योघरमें, तब कौन जु चाहि करै धनकी । जो सिद्धमें आपमें फेर न जानै सो, क्यों परवाह करै जनकी ॥३५॥ सवैया. केवल रूप महा अति सुंदर, आपुचिदानंद शुद्ध विराज । अंतरदृष्टि खुलै जव ही तब, आपुहीमें अपनो पद छाजे ।। हैं सेवक साहिव कोऊनही जग, काहेको खेद करैकिहँ काजै। अन्य सहाय न कोऊ तिहारैजु, अंतचल्योअपनो पद साजै॥३६॥ दोहा. जा छिन अपने सहज ही, चेतन करत किलोल॥ __ता छिन आनन भास ही, आपुहि आपु अडोल ॥ ३७॥ . कवित्त. पियो है अनादिको महा अज्ञान मोहमद, ताहीत न शुधि याहि और पंथ लियो है। ज्ञानविना व्याकुल है जहां तहां गि के यो परै, नीच ऊंच औरको विचार नाहिं कियो है॥ वकियो विराने वश तनहूकी सुधि नाहिं, वूडै सव कूपमाहिं सुन्नसान हियो है। ऐसे मोहमदमें अज्ञानी जीव भूलि रह्यो ज्ञानदृष्टि देखो, 'भैया' कहा ताको जियो है ।। ३८॥ देखत हो कहां कहां केलि करै चिदानंद, आतमस्वभाव भूलि (१) सहाय नही नर कोड तिहारै ऐसा पाठ भी है. BlopappapeparpRAPARRORDPROPE apanet/merooncernsrterNPANEVanwrostaravandey e veapra Roopraapasetor
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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