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________________ ManupamoropanonprenpootobapenawenopaornpromopenpnaDreapoobs शतअष्टोत्तरी. अनादिकाल, कैसे कैसे संकट सहेहु विसरतु. हो । तुम तो है सयाने मैं सयान यह कौन कीन्हो, तीनलोकनाथ हैके दीनसे फिरतु हो ॥ ३०॥ है देख कहा भूलि पस्यो देख कहा भूलि परयो, देख भूलि कहा। करयो हरयो सुख सब ही। ज्ञान है अनंत ताहि अक्षर अनन्त भाग, वल है अनंत ताहि देखो क्यों न अव ही ॥ कामवशपरे तातें न१ रकमें वशपरे, ऐसे दुख परे सो कहे न जाहिं कब ही। बात जो निगोदकी है तेहू तेन गोदकी है, ऐसे अनुमोदकी है जानिहू । जो तव ही ॥३१॥ __ सवैया वे दिन क्यो न चितारत चेतन, मातकी कूखमें आय बसे हो। ऊरध पांव नगे निशिवासर, रंच उसासनिको तरसे हो। आवसंयोग वचेकहुं जीवत, लोगनिकी तव दृष्टि लसे हो। ___ आजुभये तुम यौवनके रस, भूल गये कितनै निकसे हो॥३२॥ कवित्त. सहे हैं नरकदुख फेर भयो तेही रुख, वेरवेर कहै मुख मैं ही। है सुख लहा है । जोवनकी जेब भरे जुवति लगावे गरे, करै काम खोटे खरे काम आगि दहा है ॥ दिन दश बीति जाय हाथपीट प-20 छताय, यौवन न ठहराय कीजे अव कहा है। जरा आइलागी कान भूलिगये अवसान, देखे जमके निसान परयो शोचमहा है॥३॥ है जाही दिन जाही छिन अंतर सुबुद्धि लसी, ताही पल ताही समै जोतिसी जगति है। होत है उद्योत तहां तिमिर विलाइजातु, आपापर भेद लखि ऊरधव गति है ॥ निर्मल अतीन्द्री ज्ञान (१) 'कुसातनको'-ऐसा भी पाठ है. .. fropperpowePERapperceplpopropaproppeoppaperpa Raprapooremac000000000000000000000000000000000000NRY
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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