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________________ aapvathi Gods Sagupan je da je जिनधर्मपची सिका. PatarNTA २१३ ******* इहि जैनधर्म विन जीव तुहे, केवलपद कितह नहीं । अहं संभारि चिरकाल भयो, चिदानंद ! चेतौ कहीं ॥ ८ ॥ जैनधर्मको जीव, आप परको सब जाने । जैनधर्मको जीव, बंध अरु मोक्ष प्रमान ॥ जैनधर्मको जीव, स्यादवादी परत्यागी । जैनधर्मको जीव, होय निश्चय वैरागी ॥ इहि जैनधर्मको जीव जग, अजरामरपदवी लहै । 'भैया' अनंत सुख भोगव, आचारज इहविधि कहै ॥ ९ ॥ कवित. पापनके कूट जे अटूट भरे घट माहिं, होते चिरकालनके सबै निघटत हैं । लागे जो मिथ्यातभाव भूलिके सुभावनिज, तिनहुके पटल प्रभात ज्यों फटत हैं | अपनी सुदृष्टि होत प्रगटै प्रकाश ज्योत, तिहुं लोक उद्योत सत्य प्रगटत हैं। ऐसो जिनधर्मके प्रसादतें प्रकाश होय, अज हूं संभार भैया काहेको रटत है ॥ १० ॥ छप्पय. जो अरहंत सुजीव, जीव सव सिद्ध भणिज्जे । आचारज पुन जीव, जीव उवझाय गणिज्जे || साधु पुरुष सब जीव, जीव चेतन पद राजै । सो तेरे घट निकट, देख निज शुद्ध विराजै ॥ सवजीव द्रव्यनय एकसे, केवलज्ञान स्वरूप मय । तस ध्यान करहु हो भव्यजन, जो पावहु पदवी अखय ॥ ११ ॥ सवैया. जो जिनदेवकी सेव करे जग, ताजिनदेवसो आप निहारै । जो शिवलोक से परमातम, तासम आतम शुद्ध विचारै ॥ do do do do do MAJI ॐॐॐॐॐॐ 3.
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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