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पुण्यपापंजगमूलपचीसी. ऐसी भांतिकी अवस्था कई धेरै जीव, जगतके वासी देखे हांसी है आवै मनमें ॥३॥
चामके शरीर माहिं वसत लजात नाहिं, देखत अशुचि तोउ। इलीन होय तनमें । नारि वनी काहे की विचार कछू करै नाहिं,
रीझि रीझि मोह रहे चामके वदनमें ॥ लछमीके काज महाराज पद छांड देत, डोलत है रंक जैसे लोभकी लगनमें । तनकसी आयुपै उपाय कई कोटि कर, जगतके वासी देखे हांसी आवै, मनमें ॥४॥
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उप्पय.
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पुण्य उदय जव होय, जीव नर देही पावै । पुण्य उदय जव होय, तवहिं घर लछमी आवै ।। पुण्य उदय जव होय, सवै जिय हुकुम चलावै ।
पुण्य उदय जब होय, तवै शिर छत्र धरावै ॥ जव पुण्य उदय खिस जाय अरु, पाप उदय आवै निकट। तब परे नरकमें जीव यह, सहै घोर संकट विकट ॥५॥
पाप उदय परतच्छ, इच्छ नहिं पूजै मनकीर पाप उदय परतच्छ, विथा बहु वा तनकी । पाप उदय परतच्छ, लच्छ घरमें नहिं आवै । पाप उदय परतच्छ, जीव बहु संकट पावै ।। जव पाप उदय मिट जाय अरु, पुण्य उदय आवै प्रवल ।
तव वही जीव सुख भोगवै, उथल पथल इम जगत थल ॥६॥ Hamwapwopanporanwwewanapasanapoopanwaroons
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