SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Up.$ NYANVARING https सुपंथकुपंथपचीसिका. १८१ न पौन अनि फलके न, त्रसनि विराधि मूढ मिथ्याती कहावै ॥ ५ ॥ केई भये शाह केई पातशाह पहुमिपै, केई भये मीर केई बडे ही फकीर हैं । कई भये राव केई रंक भये विललात, केई भये काय र औ केई भये धीर हैं। केई भये इन्द्र केई चन्द्र छविवंत लसै, केई भये पनि अरु केई भये नीर हैं। एक चिदानंद केई स्वांग में कलोल करें, धन्य तेही जीव जे भये तमासगीर हैं ॥ ६ ॥ सवैया. परमान सबै विधि जानत है, अरु मानत है मत जे छह रे । किरिया कर कर्मनि जोरत हैं, नहिं छोरत है भ्रमजे पहरे ॥ उपदेश कर व्रत नेम धेरै, परभावनको उर नाहिं हरे । निज आतमको अनुभी न करें, ते परे भवसागरमें गहरे ॥ ७ ॥ सवैया मात्रिक. दुर्भर पेट भरनके कारन, देखत हो नर क्यों विललाय । झूठ सांच बोलत याके हित, पाप करत नहिं नेक डराय ॥ भक्ष्य अभक्ष्य कछू न विचारत, दिन अरु रात मिलै सो खाय । उत्तम नरभव पाय अकारथ, खोवत वादि जनम सब आय ॥ ८ ॥ कवित्त, करता सर्वन के करमको कुलाल जिम, जाके उपजाये जीव जगतमें जे भये । सुर तिरजंच नर नारकी सकल जंतु, रच्यो ब्रहमांड सव रूपके नये नये ॥ तासों वैर करवेको प्रग़टे कहांसों आय, ऐसे महाबली जिहँ खातिर में ना लये । ढूंढै चहुं ओर नहिं via कहं ताको ठोर, ब्रह्माजूकी सृष्टिको चुराय चोर लै गये॥९॥ चौपरके खेल में तमासो एक नयो दीसे, जगतकी रीति सब as up/db up at 5p/4000/26006-ups u ॐॐ
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy