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________________ Amrarwrn Sierra Coswavasaraya SANBOGancompronwapsowwmawarendenawane .............. पंद्रह पात्रकी चौपई.... में भैया सिद्ध समान निहार । निजघट माहि वहै पद धारा॥२४॥ संवत सत्रह संतालीस । मारगसिर दशमी शुभ दीस ॥ , मंगल करन महा सुखधाम । सवसिद्धनप्रति करूंप्रणाम ॥२५॥ इति श्रीशिवपंथ पचीसिका। अथ पन्द्रह पात्रकी चौपाई लिख्यते. दोहा. नमहं देव अरहंतको, नमहुं सिद्ध शिवराय ॥ नमहं साधुके चरनको, योग त्रिविधिके लाय ॥१॥ पात्र कुपात्र अपात्रके, पंद्रह भेद विचार ॥ ताकी कछु रचना कहूं, जिन आगम अनुसार ॥२॥ तीन पात्र उत्तम महा, मध्यम तीन वखान ।। तीन पात्र पुनि जघन है, ते लीजे पहिचान ॥ ३ ॥ तीन कुपात्र प्रसिद्ध हैं, अरु अपान पुनि तीन ॥ ये सब पन्द्रह भेद हैं, जानहु ज्ञान प्रवीन ॥४॥ चौपाई. उत्तम माहिं महा अरु श्रेष्ठ । तीर्थंकर कहिये उत्कृष्ट ।। मुनि मुद्रामें लेहिं अहार । वह दातार लहै भव पार ॥५॥ हे उत्तम माहिं मध्यके अंग । श्रीगणधर वरने' सरवंग ॥ चार ज्ञान संयुक्त प्रधान । द्वादशांगके करहिं वखान ॥६॥ उत्तम माहि जघन्य जु होय । सामान्यहि मुनि वरने सोय ॥ दर्चित भावित शुद्ध अनूप । परम दयाल दिगम्बर रूप ॥७॥ है मध्यम पात्र अणुव्रत धार। तिनके तीन भेद विस्तार ॥ दवित भावित गुण संयुक्त । रहै पाप किरियासों मुक्त ॥ How areanpowenwonRecharpoORADARADIONanooni aaseraDATERVASGDEVevarvasaveveovavipawasyasacrests ranquangan para que parezantuar meradespra
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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