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________________ asanaprapaneeramannaprasamanareranaorapawanaaranaperporcelanawarents POneDPANESEDwangan seNUSAMPADWAPPAMORE अकृत्रिम चैत्यालयकी जयमाला. राग नामसेती भवसिंधु तरिये ॥. वीतराग नामसेती परम पईवित्र हूजे, वीतराग नामसेती शिववधू परिये । वीतराग नामसम तू नाहिं दूजो कोऊ, वीतराग नाम नित हिरदैमें धरिये ॥२२॥ श्रीराणापुरमंदिरका वर्णनदेख जिनमुद्रा निजरूपको स्वरूप गहै, रागद्वेषमोहको वहाय । डारै पलमें । लोकालोकव्यापी ब्रह्म कर्मसों अबंध वेद, सिद्धको स्वभाव सीख ध्यावे शुद्ध थलमें ॥ ऐसे वीतरागजूके विव है है विराजमान, भव्यजीव लहै ज्ञान चेतनके दलमें । मांझनी ओ, मंडपकी रचना अनूप वनी, राणापुर रत्न सम देख्यो पुण्य फलमें ॥२३॥ o सुवुधि प्रकाशमें सु आतम विलासमें सु, थिरता अभ्यासमें सुज्ञानको निवास है। ऊरधकीरीतिमें जिनेशकी प्रतीतिमें सु,कर्मनकी जीतमें अनेक सुख भास है ॥ चिदानंद ध्यावतही निज पद पावतही, द्रव्यके लखावतही देख्यो सव पास है । वीतराग वानी कहै सदा ब्रह्म ऐसें भास, सुखमें सदा निवास पूरन प्रकाश । Rapssoordars-orcom/-Darasapharatdards06500/40/500/ दोहा. .. यह सुवुद्धि चौवीसिका, रची भगवतीदास ॥ जे नर पढहिं विवेकसों, ते पावहिं शिववास ॥२५॥ इति श्रीसुवुद्धि चौवीसी. . . हैं .. अथ अकृत्रिमचैत्यालयकी जयमाला। .ए . . चौपाई... प्रणमहुं परम देवके पाय । मन वच भाव सहित शिरनाय ॥ 'DanpanwRPANWARRORRESPONSOORIAppancanoos promopanpandom
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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