SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ cerama REPORamMenopmeSapnowPPROPOOR ....... सुबुद्धिचौवीसी. स्वरूप शुद्ध धारिके निहारकें सुधामई ॥ अनंत.ज्ञान भानसों कि चेतना निधानसों, कि सिद्धकी समानसों सुधार ठीक यों दई ।सुबुद्धि ऐसे आयके अवंधको दिखायके, चटाक चित्त लायक है झटाक झूठ रव्वै गई ॥७॥ 8 प्रकृति आदि सातकी जहां तै ताहि घातकी, तो चिंता कौन है वातकी मिथ्यात्वकी गढी ढई । लखी सुजात गातकी शरीर सात धातकी, सुया काहु भांतिकी न चेतना कहूं भई ॥ अंधेरी मेट १ रातकी सुजानी वात प्रातकी, प्रवानी जीव जातिकी सुआप चेतना मई। सुबुद्धि ऐसे आयके अवंधको दिखायके, चटाकचित्त लायकै झटाक झूठ रज्वै गई ॥८॥ है कटाक कर्म तोरके छटाक गांठि छोरके, पटाक पाप मोरके तटाक दै मृषा गई । चटाक चिह्न जानिके, झटाक हीय आनके नटाकि नृत्ल भानके खटाकि नै खरी ठई ॥ घटाके घोर फारिके, तटाक बंध टारके अटाके राम धारकें रटाक रामकी जई। गटाक शुद्ध पानको हटाकि आन आनको, घटाकि आप थानको ६ सटाक श्यौवधू लई ॥९॥ मनहरण. (३१ वर्ण) o केऊ फिरै कानफटा, केऊ शीस धरै जटा, केऊ लियें भस्म वटा भूले भटकत हैं। केज तज जाहिं अटा,केऊ धेरै चेरी चंटा,केऊ पढे पट केऊ धूम गटकत हैं । केऊ तन किये लटा, केऊ महा। हदीस कटा केऊ, तरतटा केऊ रसा लटकत हैं। भ्रम भावतें न हटा हिये काम नाही घटा, विषै सुख रटासाथ हाथ पटकत हैं॥१०५ . छप्पय... . . s. दुविधि परिग्रह त्याग, त्याग पुनि प्रकृति पंच दश। tenperaturamawawestern goerarbeterentreprendraiserereadoresterea coreowa tordosteriores serta som NanaponwanpowhopePARPOOODOORPORoops
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy