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________________ Grasrostransterdeste dost anetensproveedororario PRAppeopanSPresenocosangranepapaserapemuvercope ११५८ ब्रह्मविलासमें चित्तमें चितारिये। उदैदेव प्रभादेव श्रीउदंक प्रश्नकीर्त जयकीर्त्त पूर्णबुद्धि हिरदै निहारिये ॥ निकपाय विमलप्रभ विपुल निर्मल चित्र, गुप्त समाधिगुप्त नाम नित धारिये। स्वयंभू कंदर्प जयनाथ विमलसु देवपाल अनंतवीर्य चौवीसीए आगम जुहारिये ॥३॥ पंच पर्म इष्ट सार महामंत्र नमस्कार, जपै जीव लहै पार है है सागर भौ तीरको । रिद्धको भरै भंडार सिद्धको सुपंथ सार, , लब्धिको अनोपचार सार शुद्ध हीरको ॥ कप्टको करै निवारदुष्ट दूर होहिं छार, पुष्ट पर्म ब्रह्मद्वार सुष्ठु शुद्ध धीरको । पापको ई करैप्रहार अष्टकर्म जैतवार, भव्यको यहै अधारज्ञानवल वीरको॥४॥ है महा मंत्र यहै सार पंच पर्म नमस्कार, भौ जल उतारै पार, भव्यको अधार है । विघ्नको विनाश करै, पापकर्म नाश करे। आतम प्रकाश करैः पूरबको सार है ॥ दुख चकचूर कर, दुर्जनको दूर करे, सुख भरपूर करै परम उदार है । तिहूं लोक तारनको आत्मा सुधारनको, ज्ञान विस्तारनको यहै नमस्कार है ॥५॥ । जीव द्रव्य एक देख्यो दूसरो अजीव द्रव्य, गुण परजाय लिये सवै विद्यमान है। देख्यो ज्ञान मधि जिनवर श्री वृषभ नाथ, ताके भेद कहते अनेकही विनान है । देवनके इन्द्र जिते तिनके समूह मिले, वंदै नित्य भाव धर सदा ये विधान है । ताको सदा हमहू प्रणाम शीस नाय करें, जाके गुणधारे मोक्ष मारग, निदान है ॥ ६॥ . अनङ्गशेखर (३२:वर्ण. लघु गुरुके क्रमसे) है नमामि पंच नामको सुध्याय आप धामको, विडार मोह का मको सुरामकी रटा लई। कुराग दोष टारकें कषायको निवारके, WwwwwwwnwardPERPOSwananda Parastraspaprsawanpatoreneupvabrandedantarwasna de oncoopan
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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