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________________ PRIORaipronom/ch/mopandane ब्रह्मविलासमे. अथ शतअष्टोत्तरी कवित्तवन्ध लिख्यते । दोहा. ओंकार गुण अति अगम, पंचपरमेष्टि निवास । प्रथम तासु वंदन किये, लैहिये ब्रह्मविलास ॥१॥ . छप्पय. द्रव्य एक आकाश, जासुमहिं पंच विराजत । द्रव्य एक चिद्रूप, सहज चेतनता राजत ॥ द्रव्य एक पुनि धर्म, चलन सबको सहकारी । द्रव्य सुएक अधर्म, रहनथिरता अधिकारी ॥ द्रव्य एक पुगल प्रगट, अरु अंतक पट मानिये । निज निज सुभावमें सवमगन, यह सुबोध उर आनिये ॥२॥ जीव ज्ञानगुण धरै, धरै मूरतिगुण पुद्गल । जीव स्वपर करि भेद, भेद नहि लहै कर्ममल ।। जीव सदा शिवरूप, रूपमें दर्वसु ओरें। __जीव रमै निजधर्म, धर्मपर लहै न ठौरें। जीव दर्व चेतन सहित, तिहूं काल जगमें लसै। तसु ध्यान करत ही भव्य जन, पंचमिगति पलमें वसै ॥ ३॥ ___ रसनाके रस मीन, प्राण पलमाहिं गमावै। अलि नासा परसंग, रैन बहु संकट पावै ॥ मृग करि श्रवण सनेह, देह दुरजनको दीनी। दीपक देख पतंग, दृष्टि हित कैसी कीनी ॥ फरसइंदिवस करि पस्यो, कौन कौन संकट सहै। . एक एक विषबेलिसम, पंचन सेय तु सुख चहै ॥ ४॥ (१) होवत' ऐसा भी पाठ है. (२) काल. MoppeopoPPRPROPOROADED000/DPORPORAT ciencopameramananandamaradagamanamanasreemaanaananaanaapamapana PraprdaapanapraptapraoewroasranaortneraneetaapoorosoranpeooranawanapanoranSODY
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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