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________________ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ वर्त्तमानजिनविंशतिका. दीन्हें रविपद वास, वास विजयामहि जाको । जाको तात सुनाग, नाग भय माने ताको ॥ ताको अनंतवलज्ञानधर, धर भद्रा अवतार जी । जिहँभावधारि भवि सेवही, वहि नरिंद लहिं मुकतिश्री ॥ ९ ॥ श्री विशाल जिनस्तुति सवैया. · १०१ नाथ विशाल तात विजयापति, विजयावति जननी जिनकी । धन्य सु देश जहां जिन उपजे, पुंडरगिरि नगरी तिनकी ॥ लच्छन इंदु वसहि प्रभु पायें, गिनै तहां कोन सुरगनकी । मुनिराज कहें भविजीव तरै, सो है महिमा महिमें इनकी ॥ १० ॥ श्रीवज्रधरजिनस्तुति कवित्त. अहो प्रभु पदमरथ राजाके नंदनसु, तेरोई सुजस तिहंपुर गाइयतु है | केई तव ध्यान धेरै, केई तव जापकरे, केई चर्णशर्णतरै, जीवपाइयतु हैं। नगर सुसीमा सिधि ध्वजा विराजे शंख, मातुसरस्वतिके आनंद वधायतु है । वज्रधरनाथ साथ शिवपुरी करो कहि, तुम दास निशदीस शीस नाइयतु है ॥ ११ ॥ : श्रीचन्द्रानन जिनस्तुति छप्पय. चन्द्राननजिनदेव, सेव सुर करहिं जासु नित । पदमासन भगवंत, डिगत नहिं एक समयचित ॥ पुंडरिनगरी जनम, मातु पदमावति जाये । 1 वृपलच्छन प्रभुचरण, भविक आनंद जु पाये || जस धर्मचक्र आगे चलत, ईतिभीति नासंत सव | सुत बाल्मीक विचरंत जह, तहतह होत सुभिक्ष तव ॥ १२॥ श्रीचन्द्रवाहुजिनस्तुति मात्रिककवित्त. लक्षण पद्मरेणुका जननी; नंगर विनीता जिनको गांव । Savan Go ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ/a
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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