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________________ PROPapapnaerop000000RRYONORoRAD/opranamRRY १०० ब्रह्मविलासमें जै अंधकारहू रिझात है। देवसेन राजासुत जाकी छवि अदभुत, है ई देवसेना मातु जाकै हरपन मात है । श्रीसुजाति स्वामीको प्रणाम, है नित्य भव्य करें जाके नामलिये कुल पातक विलात है ॥५॥ श्रीस्वयंप्रभुनिनस्तुति सवैया. (मात्रिक) श्रीस्वयंप्रभु शशिलंछन पति, तीनहु लोकके नाथ कहावे। हे मित्रभूतभूपतिके नंदन, विजया नगर जिनेश्वर आवें ॥ . धन्य सुमंगला जिनकी जननी, इन्द्रादिक गुण पार न पावें। , भव्यजीव परणाम करतु है, जिनके चरन सदा चित लावें ॥ ६॥ श्रीऋषभाननजिनस्तुति छप्पय, ऋषभानन अरहंत, कीर्तिराजाके नंदन । सुरनरकरहिं प्रणाम, जगतमें जिनको वंदन ॥ वीरसेनसुतलंशय, सिंहलच्छन जिन सोहै। नगर सुसीमा जन्म देखि, भविजनमननमोहे ।। अमलान ज्ञान केवलप्रगट, लोकालोक प्रकाशधर । तस चरनकमल चंदनकरत, पापपहार परांहिं पर ॥७॥ श्रीअनंतवीर्यजिनस्तुति कवित्त, श्रीअनंतवीर्यसेव कीजिये अनेक भेव, विद्यमान येही देव मस्तक नवाइये । तात जासु मेघराय मंगला सुकही माय, न अजोध्याके अनेक गुण गाइये ॥ ध्वजापै विराजै गज पेखै जाय भज, त्रिकोटनकी महिमा देखे न अघाइये। तिहूं लोकम ईस अतिशै चौतीस लस, ऐसे जगदीश 'भैया' भलीभांतिहै ध्याइये ॥८॥ श्रीसूरप्रमजिनस्तुति-सिंहावलोकन छप्पय. सूरप्रभ अरहंत, हंत करमादिक कीन्हें। कीन्हें निज सम जीव, जीव बहु तार सुदीन्हें । PowerPROSPARRORARPARRRRRRRRRRUS Prapancanganaanananapraanaecorapaapranavanavaneerendranatanarranged D/aGangababavetprasvaparavabsa
SR No.010848
Book TitleBramhavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages312
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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