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________________ थो, [१९७] १७५- थोथु-खाली-कुछ भी न मिला हो ऐसा । ___ "थूत्' अव्यय का द्विरुक्त प्रयोग 'थूत्-थूत्' ऐसा होता है। 'थूत्थूत्' का प्राकृत उच्चारण थुत्थू है। प्रकृत 'थुत्यू से "थोथु' शब्द आना सहज है। सांप आदमी को काटता है परन्तु उससे सापका पेट नहीं भरता, उसकी भूख नहीं शमती। इससे कहावत है कि “साप खाता है पर उसका मुंह 'थोथा' न्याने खाली है" । 'थूत् । अव्यय 'धुंक' का वाचक है अतः 'थोथु' का अर्थ भी 'धुक' ही होगा । खाने पर भी मुख में मात्र थुक हो रहता है किन्तु और कुछ भी नहि आता ऐसा भाव प्रस्तुत 'थो)' का है । द्विरुक्ति से मात्र 'थुक हो धुंक' . भाव स्पष्ट होता है। १७६. उखाणो-कहावत । स० उपाख्यान-प्रा० ओक्वाण-उखाणो वा उखाणुं १७७. वयरीडूं-चैरी सं० वैरी-प्रा० वइरी। स्वार्थिक 'ई' प्रत्यय आने ने वयरीहूं। १७८. आंबू-अंकित करूं-वश करूं । 'आंकुं' क्रियापद का मूल 'अ' धातु है जिससे की 'अंकुश' शब्द बना है। जब कोई किसी को बना करता है.
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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