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________________ [१९५] सं० सत्य - सत्त | सरखावो - सत्तवादी वा सं० सत्व- सत्त । १६७. सहड - सढ - पवन का संचय करनेवाले श्वेत कपडे । सितपट - सियपढ - सियड - सहड - सड - सठ । " संकोइओ सियवडो " - ( उपदेशपद टीका ) सहड भजन ५७ वां परखत - परीक्षा करना । परि + ईक्ष - परीक्ष- प्रा० परिक्ख - परिवखंत ( चर्त० कृ० ) ' परखत' का मूल ' परिक्खंत ' में है । भजन ५८ वां १६८. वलुधो - विशेष लुब्ध । सं० विलुब्धकः - विलुद्धओ - वल्धओ 4 चट्टो बलुंधो बलूंभवु' (गुज०) का मूल भी 'विलुब्ध' में है | १६९. विसहर - विषधर - साप | सं० विषधर - प्रा० बिसहर । १७०. मोझार - मध्य में बीच में में । सं० मध्यकार - प्रा० मज्झयार । " मज्जयम्मि मन"( देशी नाममाला वर्ग ६ ० १२९)
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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