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________________ [१८० धर्मामृत भजन में लिखी हुई हकीकत से समान आशययुक्त हकीकत भगवती सूत्र के आठवें शतक के दशम उद्देशक में - मिलती है । (पृ० ११८ भगवती तृतीय भाग, श्री रायचन्द्रजिनागम संग्रह का मुद्रण)। भजन ३० वां ११५. ग्यान-ज्ञान 'ज्ञान' का विकृत उच्चारण ‘ग्यान' । ११६. चार चोरक्रोध मान माया लाभ ये चार चोर । . भजन ३१ वां ११७. सलूने-कांतिवाले-लावण्यवाले । 'लावण्य ' नाम कांति का है। सं० लावण्य-प्रा० लावण्णलाउण्ण-लोण्ण-लोन । जो लावण्यसहित है वह सलावण्य । 'सल्लूने' में मूल शब्द 'सलावण्य है। ‘सलून' प्रकृति है और "ए' प्रथमा विभक्ति का प्रत्यय है। हिंदी भाषा में प्रथमा विभक्ति में 'ए' प्रत्यय का व्यवहार नहि है। गूजराती में प्रथमा विभक्ति में 'घोडो' 'ससलो' इत्यादि प्रयोगो में 'ओ' प्रत्यय का उपयोग है और मराठी में 'ठाणे' 'पूर्ण' 'आठवले' इत्यादि प्रयोगो में 'ए' प्रत्यय का प्रयोग है। प्राकृतो में
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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