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________________ " गुपति [१७९] २. भाषा समिति - दूसरे को लेश भी तकलीफ न हो इस प्रकार हितमित सत्य बोलना । 7 ३. एषणा समिति - दूसरे को लेश भी तकलीफ न हो इस प्रकार अपने अन्नवस्त्र की शोध करना । ४. आदानभाण्डमात्र निक्षेपणा समिति-दूसरे को लेश भी तकलीफ न हो इस प्रकार अपने जीवननिर्वाह के साधनों को रखना | ५. पारिष्टापनिका समिति - दूसरे को लेश भी तकलीफ न हो इस प्रकार अपने मलमूत्रादि को छोडना । गुपति - तीन गुप्ति मनोगुप्ति-मन का निग्रह करना । चोगुप्ति - वचन का निग्रह करना । काय गुप्ति - शरीर का निग्रह करना । अर्थात् मन वचन और शरीर के दुष्ट व्यापारों को रोकना । भजन २८ वां ११२. कायर - कायर - डरपोक सं० कातर- प्रा० कायर - कायर | ११३. संसृति - संसार-फिरना | भजन २९ व ११४. आगममां
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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