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________________ - गनी _ [१६७ ८१. ठगनी-शठ-धूर्ता । ठगनी और ठगणी (गुज०) दोनों समान शब्द हैं। उसके मूल में 'स्थग' (स्थगे संवरणे-धातुपारायण भ्वादिगण अंक १०३०) धातु है । 'स्थग' धातु का अर्थ 'संवरण है। 'संवरण' का अर्थ आच्छादन-गोपन-ढांकना है। ठगने की क्रिया में 'ढांकना' क्रिया मुख्य रहती है इसी कारण से 'स्थग' धातु से 'ठग', 'ठगनी', 'ठगणी' 'ठगाई' शब्द लाने में असंगतता नहि । देशीनाममाला की टीका में आचार्य हेमचंद्र ने 'धूर्त' अर्थ में 'ठक.' शब्द का प्रयोग किया है: “कालओ धूर्तः ठकः इत्यर्थः' -(वर्ग द्वितीय गा० २८)। स्थगति इति स्थगः-प्रा० ठग । - रमणी', 'कमनी' इत्यादि प्रयोगों के अनुसार स्थगनीप्रा० ठगनी-ठगणी | हिंदी 'ठगना, गूजराती 'ठग क्रियापद का मूल भी 'स्थग्' धातु ही है। 'स्थगन' शब्द 'तिरोधान' अर्थ में सुप्रतीत है: "उदन-व्यवधा-अन्तर्धा-पिधान-स्थगनानि च-"(हैमअभिधानचिंतामणि कांड ६, 'लो० ११३.) ८२. हिरिदय-हृदय सं० हृदय । 'ह' और 'ऋ' के बीच में अन्तःवरवृद्धि के नियम से 'इ' आ जाने से और 'ऋ' का 'रिद्धि के समान हो जाने से 'हृदय' शब्द ही सीधा 'हिरिदय के रूप में आ जाता है।
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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