SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [९८ धर्मामृत (८७) . राग सारंग-दीपचंदी ताल . जंगल वसाव्यु रे जोगीए, तजी तनडानी आश जी बात न गमे आ विश्वनी, आठे पहोर उदास जी ६० सेज पलंग पर पोढता, मंदिर झरुखा मांय जी तेने नहि तृण साथरो, रहेता तरुतळ छांय जी शाल दुशाला ओढता, झीणा जरकशी जाम जी तेणे रे राखी कंथागोदडी, सहे शिर शीत घाम जी भावतां भोजन जमता, अनेक विधिनां अन्न जी ते रे मागण लाग्या टुकडा, मिक्षा भवन भवन जी ३. हाजी कहेतां हजारूं ऊठता, चालतां लश्कर लाव जी। ते नर चाल्या रे एकला, नहिं पेंजार पाव जी ४ रहो तो राजा रसोई करुं, जमता जाओ जोगीराज जो खीर नीपजावू क्षणुं एकमां, ते तो भिक्षाने काज जी ५ आहार कारण उभो रहे, एकनी करी आश जी ते जोगी नहि, भोगी जाणवो, अंते थाय विनाश जी. ६ राजसाज सुख परहरी, जे जन लेशे जोग जी ते धनदारामां नहि धसे, रोग सम जाणे भोग जी ७ धन्य ते त्याग वैरागने, तजी तनहानी आश जो कुळ रे तजी निकुळ थ्या, तेनुं कुळ अविनाश जी ८
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy