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________________ ५५ सघका नेतृत्व आया है। आगे कुछ भी हो, वह दिन कल्पनाओका दिन था। या यो कह कि उस दिन कालुगणीके मनुष्यके पारखी होनेकी बात कसौटी पर आई थी। जैन-इतिहासमे इतनी कम उम्रमें आचार्य-पद पानेके आचार्य हेमचन्द्र आदिके एक दो उदाहरण मिलते हैं। इसलिए लोगोके आश्चर्यको अतिरंजित नहीं कहा जा सकता। ____ आपने जब शासनका कार्य-भार सम्हाला, उस समय भिक्षुसंघमे १३६ माधु और ३३३ साध्वियां थीं। उनमे ७६ साधु आपसे दीक्षा-पर्यायमे बड़े थे। लाखों श्रावक थे। आपका व्यक्तित्य समझिये, संघका सौभाग्य समझिये, कालुगणीका प्रभाव या संघ-मर्यादाका महत्व समझिये, कुछ भी समझिये; आपके नेतृत्वका समृचे संघने जिस हर्पके साथ अभिनन्दन किया, वह जड लेपनीका विपय नहीं बन सकता । नवमीके मध्याहमे आपने साधु-साध्वियोको आमन्त्रित कर अपनी नीतिये बारेमे एक वक्तव्य दिया। वह यों है :__प्रय आचार्यप्रवर श्री कालुगणीका स्वर्गवास हो गया, एसमे में स्वयं खिन्न ट्र, साधु-साध्वियां भी खिन्न है। मृत्यु एक अपश्यंभावी घटना है। इसे किसी प्रकार टाला नहीं जा सकता। पिन्न होनेसे क्या बने। इसलिए सभी साधु-माध्वियोस मेरा चा पाना कि सबस चातको विन्मनसी बना दें। इसके सिवाय चित्राणी स्थिर परने दसरा कोई उपाय नहीं है। अपना शासन नोतिनधान शासन है। इन सभी माधु
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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