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________________ १६४ आचार्य श्री तुलसी कुछ एक पृष्ठों रंग भरूं, वही पर्याप्त होगा । आचायश्रीकी वार्षिक यात्रा नव-कल्पी बिहार के रूपमे पूरी होती है। आजीवन पाद - विहार होता है और कहीं स्थायी आश्रम है ही नहीं । इसलिए चातुर्मास कालमे एक जगह चार areकी स्थिति और शेपकालमे अष्टकल्पी विहार होता हैएक माससे अधिक कहीं नहीं रहते । मृगसर कृष्णा प्रतिपदाका दिन चतुर्मासान्त विहारका और मर्यादा - महोत्सवकी भूमिकाका दिन है । - मर्यादा - महोत्सव तेरापन्थ - संघकी एकता और संगठनका महान् प्रतीक पर्व है । वह माघ शुक्ला सप्तमीको होता है । उस दिन आचार्यश्री मर्यादापुरुषोत्तम आचार्य भिक्षुकी रची हुई मर्यादा सुनाते है । सब साधु-साध्विया उनकी प्रतिज्ञाओको दोहराते है - अपनी सहर्ष सम्मति प्रगट करते है । जहाँ आचार्यश्री होते है, वहाँ साधु-साध्विया आ जाते है । आनेके पहले क्षणमे जो 'सिंघाडा" के मुखिया होते है, वे पुस्तकों और अपने पास रहे साधु-साध्वियों तथा अपनेआपको आचार्यश्री के चरणोंमे समर्पण करते है । समर्पणकी शब्दावली यह होती है - "गुरुदेव । आपकी सेवामे ये पुस्तके प्रस्तुत है, ये साधु या साध्वियाँ प्रस्तुत है, मैं प्रस्तुत हूं, आप मुझे जहा रक्खेगे, वहा रहने का भाव है ।" १ - साधारणतया एक सिघाडेमे ३ साधु अथवा ५ साध्विया होती है ।
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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