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________________ शिष्य-सम्पदा १५३ हो गई । वे दीक्षाके कष्टोसे घबड़ा गये और उन्होंने पुन' गृहस्थी मे जानेका निश्चय कर लिया। यद्यपि वे ( कन्हेयालालजी ) दश वर्षसे दीक्षा लेनेको उत्सुक थे। फिर भी दीक्षाके परिपह कम नहीं होते। जो व्यक्ति गृहस्थकी सुख-सुविधाओंमे परिपक्व हो जाता है, अनुशासनहीन सामाजिक जीवनमे रम जाता है, शारीरिक श्रम नहीं करता है, वह उन पके हुए संस्कारोंको लेकर साधु-संस्था मे दीक्षित बने तो उसके लिए तेरापन्थ साधु-संस्थामे सम्मिलित होना एक बड़ी समस्या है। साधु-जीवनकी कठिनाइयां हैं, वे तो है ही, उनके अतिरिक्त सुदृढ़ अनुशासनमे रहना, कठोर श्रम करना, स्वावलम्बी रहना, दूसरोंका कहा मानना, उलाहना सहना आदि आदि ऐसी प्रवृत्तिया है, जो कच्चे-पक्के संसारके रंगमे रंगे हुए व्यक्तिके लिए दुरूह होती है। ___ बाल-जीवन उन सासारिक सुविधाओं एवं शिथिलताओंका आदी नहीं होता। इसलिए वह सरलतापूर्वक साधु-संस्थाकी कठिन प्रवृत्तियोंमे भी अपना जीवन ढाल लेता है और उनके अनुकूल बना लेता है। पिता-पुत्र इसके सजीव उदाहरण हैं। ४५ वर्षका पिता घर जाने की सोच रहा है और १० वर्षका पुत्र सब कठिनाइयोको चीरता हुआ संयम-साधनामें अग्रसर होता जा रहा है। पिताने पुत्रको पुन घर लौटनेको कहा। उनने यह कब सोचा कि मेरा पुत्र मेरी बातको टाल देगा। उन्होंने देखा कि मैं कठिनाइयोसे घबड़ा गया. तव चह से नहीं घबड़ाया होगा। में वृढा होने जा रहा हूं, यह आखिर वाला है। पर उन्होंने
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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