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________________ विश्वकी गतिविधि माम्यवाद भी आगे चल किसी अपने अनुजसे संघर्प मोल न ले, यह माना नहीं जा सकता। इसमे भी सत्ता और पूजीका एक छत्र राज्य है। ___एकके बाद दूसरी सत्ता और एकके बाद दूसरे वाद आये। ___ उनसे सुख-शान्तिका द्वार नहीं खुला तो उनके हृदयमे धडकन कसे बनी रही ? यह एक प्रश्न है। इसका उत्तर पाने के लिए विशेप गहराईमे जानेकी जरूरत नहीं। उनसे कुछ नहीं बना या बनता यह नहीं , उनसे मनुष्यको रोटी मिली, मकान मिला, सुरक्षा मिली, जीवन चलानेवाले साधन मिले, पर जो इनसे आगे हे ( सुख-शान्तिका मार्ग), वह नहीं मिला। __ मनुष्य के उर्वर मस्तिष्कने खोज की। मनका बन्धन तोडा । उसने पाया कि जीना ही सार नहीं, जीनेका मार है जीवनका विकास करना। बस इसी विचारधाराने धर्म और अध्यात्मवाद को जन्म दिया। एक विद्यार्थीने आचार्य श्री तुलसीसे पूछा"शान्ति कव होगी ?" आपने उत्तर दिया- "जिस दिन मनप्य मनुप्यता आ जायगी।' मनुष्य अपनी सत्ताको समझे बिना जाने-अनजाने मनुप्यतासे लडता आ रहा है। मानवताका पुजारीवर्ग उस मनुष्य आकारवाले वेभान प्राणीको समझाता आ रहा है। लाखो करोडो वप वीते, फिर भी वह लड़ाई ज्यो की त्यो चाल है। दोनोमेसे न कोई धका. न कोई थमा, यह आश्चर्य है। इस पर लिख-ऐसा मेरा संकल्प है।
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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