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________________ ११४ प्राचार्य श्री तुलसी स्पश-धमसे अन्याय मिटता है, राजनीतिसे भी, फिर इनमे अन्तर क्यों ? आचार्यश्री-राजनीतिमे स्वार्थ रहता है, बल प्रयोग होता है । वल-प्रयोगसे अन्याय छुडवाना भी हिंसा है ! यहीसे राजनीति और धर्म दो होते चले जाते है। स्पेंश -विश्व-शान्ति कैसे हो सकती है ? युद्ध कसे मिट सकता है ? आचार्यश्री-स्वार्थ, अनधिकारपूर्ण प्रभुत्व छोडनेसे दोनों हो सकते है। यह हो कैसे, आजका लालची मनुष्य अप-स्वार्थ तक छोडनेको तैयार नहीं है। स्पेश-आप सत्यकी मूर्ति है, फिर गवाही क्यों नहीं देते ? आचार्यश्री हमारे द्वारा किसी पक्षको भी कष्ट नहीं होना चाहिए। लेडी स्पेश-सासारिक उपकारको आप धर्मसे पृथक् कैसे बताते है ? आचार्यश्री-जिससे आत्म-विकास न बने, केवल भौतिक लाभमात्र हो, उसको आत्म-धर्म नहीं माना जा सकता। हंगरीके सुप्रसिद्ध विद्वान् तथा प्राच्य संस्कृतिविषयक उच्चशिक्षा-कौन्सिलके प्रतिष्ठाता एवं सञ्चालक डा० फेलिफ्स वाल्पी के विचित्र प्रश्नोंके उत्तर आनन्ददायक होने के साथ-साथ ज्ञानवर्धक भी है :
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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