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________________ प्रश्नोत्तर ११३ वे किसी भी युक्ति अथवा तर्कको सहन नही कर सकते । लेकिन श्री पूज्यजी महाराजमे हमारे धार्मिक प्रसगमें कभी भी दूसरे मतके दोष नही निकाले और न अन्य धर्मके वारेमे निन्दात्मक बातें की, लेकिन तर्क एव युक्ति के साथ अपना दृष्टिकोण ही रक्खा ।" इस प्रकरणमें आपकी अपनी एक निजी विशेषता है । वह है प्रश्नकर्ताको पराजित करनेकी भावना न रखना । प्रश्नकर्ता कैसी भी भावना लेकर आये, उत्तरदाताको उसे हर हालतमे क्षमा करना चाहिए । उभयपक्षीय वितण्डा और जय-पराजयकी भावना से शत्रु-भाव प्रवल होता है । निष्प्रयोजन शत्रु बनाने तथा शत्रुतापोपण-वृत्तिको बढ़ावा देनेका अथ क्या ? उत्तरदाताका कर्त्तव्य हे - समसकनेवाले को समझाये, वितण्डा करनेवालेसे मौन रक्खे, किन्तु वैमनस्य न बढ़ावे । आपकी इस प्रवृत्तिसे हजारों व्यक्ति आपकी ओर झुके है । आचार्यश्री अपने प्रश्नकर्ताको जिस शीघ्रता से सुलझानेका प्रयत्न करते है, उसमे आपकी स्पष्टता, आत्मनिष्ठा और निर्भीकता तर आती है। भारत के सर्वोच न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पी० डबल्यू स्पॅशने आपसे पूछा- क्या राजनीति और धर्म एक ही है ? आपने उत्तरमे कहा - नहीं । स्पॅश - कैसे ? आचार्यश्री - राजनीति धर्मसापेक्ष हं. किन्तु समूची राजनीति धर्म नहीं है।
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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