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________________ १०२ प्राचार्य श्री तुलगी राजनीतिका हुआ है। आपने इसे बडी दृढताके साथ व्यक्त किया है :__“धर्म अपनी मर्यादासे दूर हटकर राज्यकी सत्तामे घुलमिल कर विपसे भी अधिक घातक बन जाता है। यह वाणी धमद्रोही व्यक्तियों की है, यह नहीं माना जा सकता, धर्मके महान् प्रवर्तक भगवान महावीर की वाणीमे भी यही है। धन और राज्यकी सत्तामे विलीन धर्मको विप कहाजाये, इसमे कोई अतिरेक नहीं है।” धर्मके प्रति धर्माचार्यकी ऐसी कटु आलोचना अध्यात्मके उज्ज्वल पहलू की ओर संकेत करती है। प्रत्येक व्यक्तिको समझना चाहिए कि धममें श्रद्धाका स्थान है, अन्धश्रद्धाका नहीं। आपका किसी वस्तुके प्रति आग्रह नहीं है। आपकी दृष्टि उसके गुणावगणकी परखकी ओर दौडती है। आपकी लेखनी न्यायकी उपेक्षा और अन्यायसे समझौता नहीं कर सकती। पत्रकार सम्मेलनमे आपने बताया :___ “आर्थिक वैषम्यको लेकर जो स्थिति बिगड़ रही है, उसे भी हम दृष्टिसे ओझल नहीं कर सकते । मेरो दृष्टिमे साम्यवाद इसीका परिणाम है । ..... लोग मुझसे पूछते है-क्या भारतमे साम्यवाद आयेगा ? मैं इसके लिए क्या कहूं ? यही कहना पड़ता हैआप वलायेंगे तो आयेगा, नहीं तो नहीं। जिनके हृदयमे धर्मकी तडफ है, उसकी रक्षाकी चिन्ता है, वे अर्थ-संग्रह करना छोड़ दें। उनकी भावना अपने आप सफल हो जायेगी। दान करनेके लिए
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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