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________________ विचारककी वीणाका झकार भी आप संग्रहकी भावना मत रखिए। दुनियां आपके दानकी भूखी नहीं है । उसे आपके संग्रहपर रोष है। यदि पूँजीपति इसे नहीं समझ पाये तो चालू वेग न अणुबमसे रुकेगा, न अस्त्रशखोंके वितरण से । ........."आप यह मत समझिए कि मैं साम्यवादका समर्थक हूं। मुझे साम्यवाद त्रुटिपूर्ण दिखाई देता है, पूँजीवाद तो है ही।...."राष्ट्रीय पूजी-संग्रह भी उतना ही बुरा है, जितना व्यक्तिगत । जबतक इच्छाओंको सीमित करनेकी वातका यथेष्ट प्रचार नहीं होगा, तबतक आवश्यकता-पूर्तिके साधनोंका समाजीकरण केवल बाह्य उपचार होगा। व्यक्तिकी स्थिति राष्ट्र लेलेगा। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्रका शोषक बन जायगा। . ... ........ आर्थिक समानताका सूत्र पूंजीपतियोंको ही अप्रिय लगेगा, किन्तु इच्छा-नियन्त्रणका सूत्र पूंजीपति और गरीब दोनोंको अप्रिय लगेगा। लगे, यह तो रोगका उपचार है। इसमें प्रिय-अप्रिय लगनेका प्रश्न ही नहीं होता।" ऊपरकी पंक्तियां यह साफ बताती है कि लोग कठिनाइयाँ चाहते नहीं, किन्तु अज्ञानवश उन्हें निमन्त्रण देते है। इसीलिए पूर्व-ऋषियोने बताया है-“अज्ञान ही सबसे बड़ा दुःख है।" यदि मनुष्य वस्तुस्थितिको जानले, श्रद्धापूर्वक मानले तो फिर वह अपने हाथों अपना मार्ग कण्टकाकीर्ण नहीं बना सकता। लोग शान्ति के पिपासु हैं, फिर भी शान्ति मिल नहीं रही है। आपकी भाषा मे उसका सरल मार्ग मिलता है : "अपनी शान्तिके लिए दूसरेकी शान्तिका अपहरण मत करो
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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