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________________ आचार्य श्री तुलमी इन वादों के जन्मका कारण क्या है ? यह भी सोचा होगा। आप भिन्न-भिन्न वाद नहीं चाहते, फिर भी उनके पदा होने के मावन जुटा रहे है, आश्चर्य ।। ये वाद दुखमय स्थितियोंसे पटा हुआ है । एक व्यक्ति महलमे बैठा मौज करे और एकको खाने तकको न मिले, ऐसी आर्थिक विपमता जनतासे सहन न हो सकी। अगर आज भी उच्चवर्ग सम्हल जाय, अपरिग्रहवतकी उपयोगिता समझ ले तो स्थिति बहुत कुछ सुधर सकती है।" आप धर्मकी व्याख्या बड़े सरल शब्दों करते है। धर्म की व्यारया र उसे अनपढ आदमी भी हृदयगमकर सकता हे____ "और धम क्या है ? सत्यकी खोज, आत्माकी जानकारी, अपने स्वरूपकी पहचान, यही तो धर्म है। सही अर्थमे यदि धर्म है तो वह यह नहीं सिखलाता कि मनुष्य-मनुष्यसे लड़े। धर्म नहीं सिखलाता कि पूजीके माप-दण्डसे मनुप्य छोटा या बडा है। धर्म नहीं सिखलाता कि कोई किसीका शोपण करे । धर्म यह भी नहीं कहता कि वाह्य आडम्बर अपनाकर मनुप्य अपनी चेतना खो बैठे। किसीके प्रति दुर्भावना रखना भी यदि धर्ममे शुमार हो तो वैसा धर्म किस कामका। वैसे धमसे कोसों दूर रखना बुद्धिमत्तापूर्ण होगा।" ___ आचार्यश्री किसी भी दशामे बाह्य आडम्बर और सादगी प्रदर्शनको पसन्द नहीं करते । आपने कार्यकर्ताओं के सम्मेलनमें उन्हें सम्बोधन करते हुए कहा "धार्मिक आयोजनोंमे आडम्बर और प्रदर्शनसे कार्यकर्ताओं
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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