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________________ ६७ अंश है, जो दोनोको मिली समान विरासतके परिणाम है । इस बात की प्रतीति सिद्धसेनके न्यायावतारके साथ न्यायमुख और न्यायप्रवेशकी तुलना करनेसे हो सकती है। केवल नामकरण अथवा अन्य के विषयके चुनावमे ही नहीं, शब्दविन्यास और वस्तुविवेचनतकर्म इन तीनो अन्योका साम्य बहुत ही ध्यान आकर्षित कर, ऐसा है। सिद्धसेनके द्वारा न्यायावतारमे किये गये कतिपय विधान न्यायमुख ५१ न्यायप्रवेश के विधानोके सामने ही है अथवा दूसरे किसी से बौद्ध अन्य के विधान के सामने है, यह जानने का निश्चित साधन तो इस समय कोई नहीं है; फिर भी न्यायमुख तथा न्यायप्रवेशको प्रत्यक्ष एवं अनुमान-विषयक विचारसरणीको सम्मुख रखकर न्यायावतारकी विचारसरणीको देखने पर इस समय ऐसा प्रतीत होता है कि सिद्धसेन ने अपने विधान दिनागकी परम्परा के सामने ही किये है। शंकरस्वामी यदि चीनी परम्परा और उसपरसे बद्ध मान्यता सच हो, तो उक्त न्यायप्रवेश अन्य शकरस्वामीका ही है और यह शकरस्वामी दिनागके शिष्य थे। 'तत्वसमह' के व्याख्याकार कमलशील और सन्मतिके टीकाकार अभयदेव द्वारा निदिष्ट शकरस्वामीसे न्यायप्रवेशके का शकरस्वामी भिन्न है या नहीं, यह जानने का इस समय हमारे पास कोई साधन नहीं है, परन्तु यदि न्यायप्रवेशका का कोई शकरस्वामी हो और वह दिनागका शिष्य हो अथवा दिनाके समयके आसपास हुआ हो, तो ऐसी सम्भावना रहती है कि सिद्धसेन और उस सकरस्वामी दोनोमसे किसी एकके ऊपर दूसरेकी कृतिका असर है अथवा दोनोको कृतिम किसीकी विरासत है। धर्मकीर्ति और भामह इन दो विद्वानोमसे पहला कान और वादका कान, इस विषयमें मतभेद है, १. इसके लिए देखोन्यायमुखको प्रो० टूची द्वारा सम्पादित अंग्रेजी श्रावृत्ति, न्यायप्रदेशको प्रो० भट्टाचार्य तथा प्रो० ध्रुव द्वारा सम्पादित श्रावृत्ति तयाँ पं० श्री दलसुखभाई मालवणिया द्वारा की गयी विस्तृत तुलनावाला परिशिष्ट . 'न्यायावतारपातिकवृत्ति' पृ० २८७ । २. अनुमानमें अभ्रान्तताका, प्रत्यक्षमें भी अभ्रान्तताका और प्रत्यक्ष स्वार्थपरार्थ भेद होनेका इत्यादि विधान । ३. तत्वसंग्रहजिका पृ० १९९ । ४. सन्मतिटीका पृ० ६६४, पं० १५ । ५. भामह और धर्मकोतिपर दिवेकरका लेख ज० रॉ० ए० सो० अक्तूबर १९२९, पृ० ८२५ से।
SR No.010844
Book TitleSanmati Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi, Shantilal M Jain
PublisherGyanodaya Trust
Publication Year1963
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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