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________________ ६६ है, इसलिए वह सराव है ऐसा नही" - कालिदासका यह सक्षिप्त भाव मानो માખ્ય રૂપમે વિસિત દોરી સિદ્ધસેનળી સમગ્ર ઘડી વત્તીસીમેં પ્રતિપાવિત હૈં, ऐसा उस बत्तीसी और कालिदासके उक्त भाववाले पद्यको देखनेपर ज्ञात हुए विना नही रहता । सिद्धसेन के प्रिय छन्द तथा अश्वघोष एव कालिदासके प्रिय छन्दोके बीच भी बहुत ही समानता है । उनमे शब्दाडम्बर नहीं, बल्कि अर्यगौरव विशेष है | दार्शनिक विपयके कारण सिद्धसेनको वत्तीसियों में जिस कठिनताका अनुभव होता है उसे जाने दें, तो कल्पनाकी उज्यगामिता, वक्तव्यकी आकर्षकता और उपमाको मनोहरताके विपयमे ये तीनो बहुत ही समान है । दिनाग और शंकररणामी . दिकनाग बोद्ध तार्किक दिनाग एक विज्ञानवादीके रूप में विख्यात है । इनकी अनेक प्रसिद्ध कृतियोंमेंसे एक भी मूल एवं अविकल रूप में इस समय हमारे सामने नही है । अत हम इनकी कृतियो के विषयमें जो कुछ जान सकते हैं, वह मुख्यत उनके चीनी और तिव्वती अनुवाद तथा उन भाषाओ में उनपर की गयी व्याख्यायके आधारपर ही । दिडनागका एक प्रसिद्ध ग्रन्य न्यायमुख' है । प्रो० टूचीने चीनीपरसे इसका अंग्रेजी अनुवाद किया है । दूसरा एक 'न्यायप्रवेश' नामका अन्य अतिप्रसिद्ध और मूल रूपमे ही सुलभ है ।' तिब्बती परम्परा और प्रो० विशेखर भट्टाचार्यका मत वाधित न हो, तो यह अन्य भी दिङ्नागको ही कृति है । दिडनाग और सिद्धसेन के पौर्वापर्य या समकालीनता के वारे में कुछ भी निश्चयपूर्वक कहना शक्य नही है, फिर भी ऐसा माननेका कारण है कि इन दोनो के बीच यदि समयका अन्तर होगा, तो वह नहीं जैसा ही होगा । इन दोनोमेंसे किसी एककी कृतियों के ऊपर दूसरेकी कृतियोका प्रभाव यदि नहीं भी पड़ा होगा, तो भी इतना निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि इन दोनोकी कृतिगोमे ऐसे अनेक समान १. पुराणमित्येव न साधु सर्व न चापि काव्यं नवमित्यवद्यम् । सन्तः परीक्ष्यान्यतरद् भजन्ते मूढः परप्रत्ययनेयबुद्धिः ॥ मालविकाग्निमित्र २. देखो डॉ० सतीशचन्द्रका 'हिस्ट्री ऑफ इण्डियन लॉजिक' अन्य तथा 'न्यायप्रवेश' दूसरे भागको प्रो० विधुशेखर भट्टाचार्यको प्रस्तावना । ३. यह ग्रन्थ गायकवाड़ ओरिएण्टल सिरोजमें प्रो० श्रानन्दशंकर बी० ध्रुव द्वारा सम्पादित होकर प्रकाशित हुआ है । इसकी अनेक हस्तलिखित प्रतियाँ जैन भण्डारोमें है ।
SR No.010844
Book TitleSanmati Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi, Shantilal M Jain
PublisherGyanodaya Trust
Publication Year1963
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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