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________________ आ० हेमचन्द्र ने 'अनुमल्लादिन ताकिका' (सिद्धहेम ० २ २ ३९) कहकर जिनका श्रेष्ठ वादीके रूप में सूचन किया है और सन्मतिके टीकाकार अभयदेवने पृ० ६०८ ५५ युगपदुपयोगवादके पुरस्कर्ताक रूपमे जिनका निर्देश किया है, वह - मल्लवादी ही प्रस्तुत मल्लवादी हो, ऐसा अधिक सम्भव है। उनका नयचक्र अन्य अविकल रूप से उपलब्ध नहीं है, मत अन्त परीक्षण द्वारा उक्त वातोके बारेमे अधिक निश्चयपूर्वक कहना इस समय शक्य नहीं है । आ० हरिभद्रने अनेकान्तનીપતાને ર ૩૦ કરોવિનયનીને બબ્દસહુન્નીશી ટીમે સન્મતિ ટીकारके रूपमे जिन मर लवादीका सूचन किया है, वह मल्लवादी प्रस्तुत मल्लवादी होने चाहिए, ऐसी सम्भावना रहती है और परम्परा भी ऐसी ही है। उनकी यह टीका इस समय उपलब्ध नही है, परन्तु बृहटिप्पणीकारने उस टीकाका परिमाण सात सौ श्लोकका बताया है। प्रवन्धोम मल्लवादीके बौद्धवादिविजयका जो समय निर्दिष्ट है, उसको यथार्थतामें मुनि श्री जयूविजयजीके सशोधन के पश्चात् अब सन्देह नही रहता। वही मल्लवादी सन्मतिके टीकाकार हो, तो सिद्धसेनके "समय के साथ उनके समयका मेल वि०ानमें कोई बाधा उपस्थित नहीं होती। सिद्धसेन और मल्लवादी दोनो समकालीन होगे और एक दूसरे के अन्यपर उनकी विद्यमानतामे ही टीका लिखी होगी। कदाचित् दोनोके बीच दूसरा कोई सम्बन्ध न हो, तो अन्तमे विद्याविषयक गुरु-शिष्यमाव सम्बन्ध भी हो। इससे अधिक कल्पना करने का यह स्थान नहीं है। धर्मकीतिक न्यायविन्दुपरकी धर्मोत्तरको टीकाके ऊपर टिप्पण लिखनेवाले जो मलवादी है, वह प्रस्तुत मल्लवादीसे भिन्न और उनसे अर्वाचीन है तथा जन है। उनका टिप्पण अभीतक मुद्रित नही हुआ। मल्लवादीके नामसे प्रकाशित टिप्पण उनका नहीं है। उनका समय ई० ७००-७५० है।' जिनभद्र- जैन परपरामें जो जिनभद्र भाष्यकार एव क्षमाश्रमणके नामसे प्रसिद्ध है और जिनका हेमचन्द्रने श्रेष्ठ व्याख्याता के रूपमे (सिद्धहेम० २ २ ३९) निर्देश किया है, वही कथावली आदिके प्रबन्धोमे आनेवाले जिनभद्र यहाँ प्रस्तुत सिद्धसेन प्रस्तुत जिनभद्रके पूर्ववर्ती है इस परम्परागत वातके सच्ची होने के बारेमे पहले कहा जा चुका है। जिनभद्रकी उपलब्ध कतिपय कृतियोमस मुख्य एव प्रसिद्ध 'विशेषणवती' और 'विशेषावश्यकभाष्य' इन दो कृतियोके साथ १. देखो पृ० ८ पर टि० २। २. देखो धर्मोत्तरप्रदीपको प्रस्तावना पृ० २८, ३१, ५४, ५७ । प्र०-४
SR No.010844
Book TitleSanmati Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi, Shantilal M Jain
PublisherGyanodaya Trust
Publication Year1963
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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