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________________ ४८ कोतिफलक बौद्ध समन्तभद्र-व्याकरणको लक्ष्यमे रखकर हो । इस समन्तभद्र नामक व्याकरणका इतिहास दोनने अपने पोर इतिहासमें दिया है। यदि समन्तभद्रकर्तृक या समन्तभद्र नामक कोई जन व्याकरण अस्तित्वम होता, तो उसका सूचन गाकटायन और हेमचन्द्र जैसे वैयाकरणोके मूल अन्य अथवा न्यासा- . दिमे आये बिना शायद ही रहता। વયોવૃદ્ર To Fકિશોરનીને “નેતાન્ત’ પત્રિો સન્મતિ સિદ્ધસેના ( ई० १९४९,) प्रकाशित करके उसमे उन्होने सन्मति, द्वामिशिकाएँ और न्यायावतार इन तीनोके करूपसे एक सिद्धसेनके स्थान में तीन भिन्न-भिन्न સિદ્ધસેનો જન્મના વી હૈ વીર સતિત પ્રણેતાપસે અમિત સિદ્ધનો दिगम्वर परम्पराका बतलाया है। अपने मतको स्थापनाम वाधक हो सके, ऐसे जो-जो वाक्य उन्हें वात्रिंशिकाओम दिखायी दिये, वहाँ सर्वत्र उन्होने एक ही सरल युक्तिका आश्रय लिया है । वह सरल युक्ति इतनी ही है कि उस-उस द्वात्रिनिकोके रचयिता सिद्धसेन भिन्न है । परन्तु उनकी विचारसरणी मुझे अभीतक पाह्य हुई नहीं है। उक्त सिद्धसेनाकमे अन्य भी कई आपत्तिजनक बातें है । उनका विचार मने 'सपूर्ति' में आगे किया है। वर पूलाचार दिगम्बराचार्य पट्टकेरकी कृति माने जानेवाले 'मूलाचार' ग्रन्थका सूक्ष्म अभ्यास करने के पश्चात् हमें निश्चय हो गया है कि वह कोई मौलिक अन्य नहीं है, परन्तु एक सग्रह है। वट्टरने सन्मतिमेस चार गाथाएँ ( २४०-३,) मूलाचारके समयसाराविकार (१०८७-९०) में ली है। इससे हम इतना कह सकते है कि यह अन्य सिद्धसेनके बाद सकलित हुआ है । इसके अलावा मूलाचारमे अनेक गाथाएँ अन्तिम भद्रवाहु द्वारा संकलित नियुक्तिसंग्रहमेसे भी ली गयी है। इससे वट्टकर विक्रमकी छठी सदीके वादक जान पड़ते हैं। मल्लवादी और जिनभद्र મન જવાવી––ાવી આર પ્રમાવવરિત્ર વાઢિ પ્રવન્ડોમ નો મત્સ્યવાવી निदिष्ट हैं, जिनका वौद्धवादिविजयका समय वि० स० ४१४ का दिया गया है। ર નો દાવશોરનયન અન્ય પ્રણેતા તથા વિદ્ધવિનેતા મહાન વાવીને રૂપમે प्रसिद्ध है, वही मल्लवादी यहाँ प्रस्तुत है । १. प्रभावकचरित्र पृ० ७४, २लो० ८३ । २. प्रभावकचरित्र, मल्लवादिप्रवन्ध, २लो० ३४ ॥
SR No.010844
Book TitleSanmati Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi, Shantilal M Jain
PublisherGyanodaya Trust
Publication Year1963
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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