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________________ ३० सन्मति-प्रकरण विवचन- सुख, दुख आदिका अनुभव करनेवाला कोई तत्व आन्तरिक ही है और रूप आदि गुणोको धारण करनेवाला पुद्गल वाह्य ही कहलाता है। अब यदि पहले कहा, उस तरह आत्मा और पुद्गलका परस्पर प्रवेश माना जाय, तो जीवमे प्रवेगके कारण पुद्गल आभ्यन्तर कहा जाना चाहिए तथा पुद्गलमे प्रवेश के कारण जीव वाह्य कहलाना चाहिए। और यदि ऐसा हो तो वाह्य-आभ्यन्तरताकी जो व्यवस्था है वह जैन शास्त्र मे कैसे घटेगी? ऐसी शकाका उत्तर यहाँ दिया गया है। જૈન શાસ્ત્ર મુજ પવાર્ય વાહ્ય હી હૈ ઔર અમુક નિયત પવાર્ય સામ્યન્તર ही है ऐसा कोई स्वाभाविक विना नहीं है। उसका ऐसा कहना है कि जो मात्र मनका विषय होनेसे वाह्य इन्द्रियो द्वारा गृहीत नहीं होता वह आभ्यन्तर और जो વાહ્ય ફન્દ્રિયોને ચળ ના સ વ વાહ્ય દસ વ્યાહ્યા અનુસાર પુરુમી आभ्यन्तर हो सकता है और जीव भी वाह्य कहा जा सकता है। जो कर्म आदि पुद्गल वाह्य इन्द्रियो के विषय नहीं है वे आभ्यन्तर ही है और आत्मा सूक्ष्म होने , पर भी पुद्गल द्वारा उसकी चेष्टाएँ वाह्य इन्द्रियोंसे जानी जा सकती है, अत देहधारीक रूपमे वह वाह्य भी है। प्रत्येक नयकी देशनाके अनुसार क्या-क्या फलित होता है उसका कथन दवद्वियस्स श्राया बंधइ कस्म फलं च वए । बीयास भावमत्तं ण कुणइ ग य कोई एइ ॥५१॥ दवढियस्स जो चैव कुणइ सो चेव येथए णियमा । अण्णो करेइ अण्णो परिभुंजइ ५ज्जवणयर। ॥५२॥ अर्थ द्रव्यास्तिक नयकी दृष्टि से आत्मा है, अत. वह कर्म बाँधता है और फलका अनुभव करता है। दूसरे पर्यायास्तिक नयकी दृष्टिसे सिफ उत्पत्ति है, इससे न तो कोई वध करता है और न कोई फल भोगता है। द्रव्यास्तिक नयकी दृष्टि से जो करता है वही अवश्य भोगता है। पर्यायास्तिक नयकी दृष्टि से करता है अन्य और भोगता है अन्य। विवेचन---द्रव्यास्तिक नय स्थिरतत्त्व स्वीकार करता है। अत उसकी देशनके अनुसार कर्म वॉवनेवाला और भोगनेवाला कोई एक आश्रय है ऐसा कहने के लिए तथा जो कर्म वाचता है वही फल भोगता है ऐसा कहने के लिये अवकाश है, परन्तु पर्यायाथिक नवकी देशना के अनुसार तो इतना भी कहने के लिए अवकाश नहीं है, क्योकि वह क्षणिकवादी होने से उसके मतम वस्तु उत्पन्न होकर दूसरे ही क्षणमे नष्ट
SR No.010844
Book TitleSanmati Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi, Shantilal M Jain
PublisherGyanodaya Trust
Publication Year1963
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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