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________________ पुरुषार्थसिद्धयुपाय । श्रीअमृतचन्द्रस्वामीविरचित मूल और पं० नाथूरामजी प्रेमीकृत सान्वय सरल भाषाटीका सहित । इसमें आचारसम्बन्धी बड़े बड़े गूढ़ रहस्योंका वर्णन है । अहिंसाका तत्त्व और स्वरूप जितनी स्पष्टता और सुन्दरतासे इस ग्रन्थमें वर्णित है उतना और कहीं नहीं । यह तीन बार छपकर बिक चुका है, इस कारण चौथी बार छपाया गया है। न्यौछावर सजिल्दकी १।) पञ्चास्तिकाय श्रीकुन्दकुन्दाचार्यकृत मूल, तथा श्रीअमृतचन्द्रसूरिकृत तत्त्वदीपिका, जयसेनाचार्यकृत तात्पर्यवृत्ति ये दो संस्कृत टीकायें, और पं० पन्नालालजी बाकलीवालकृत अन्वय अर्थ भावार्थ सहित भाषाटीका । इसकी भाषाटीका स्वर्गीय पांडे हेमराजजीकी भाषाटीकाके अनुसार नवीन सरल भाषामें परिवर्तित की गई है । इसमें जीव, अजीव, धर्म, अधर्म और आकाश इन पाँचों द्रव्योंका उत्तम रीतिसे वर्णन है । तथा काल द्रव्यका भी संक्षेपमें वर्णन किया गया है । बम्बई यूनिवर्सिटीके बी० ए० के कोर्समें है। दूसरी बार छपी है । मूल्य सजिल्दका २) ज्ञानार्णव श्रीशुभचन्द्राचार्यकृत मूल और स्व० पं० जयचन्द्रजीकी पुरानी भाषावचनिकाके आधारसे पं० पन्नालालजी बाकलीवालकृत हिन्दी भाषाटीका सहित । योगशास्त्र संबंधी यह अपूर्व ग्रंथ है। इसमें ध्यानका वर्णन बहुत ही उत्तमतासे किया है, प्रकरणवश ब्रह्मचर्यव्रतका वर्णन भी विस्तृत है। तीसरी बार छपा है । प्रारंभमें ग्रंथकर्ताका शिक्षाप्रद ऐतिहासिक जीवनचरित है । मूल्य सजिल्दका ४) सप्तभंगीतरंगिणी श्रीमद्विमलदासकृत मूल और पं० ठाकुरप्रसादजी शर्माकृत भाषाटीका । यह न्यायका अपूर्व ग्रन्थ है । इसमें ग्रंथकर्त्ताने स्यादस्ति, स्यान्नास्ति, आदि सप्तभंगीनयका विवेचन नव्य। न्यायकी रीतिसे किया है । स्याद्वाद क्या है, यह जाननेके लिये यह ग्रंथ अवश्य पढ़ना चाहिये । दूसरी बार सुन्दरतापूर्वक छपा है । न्यो० १) . बृहद्रव्यसंग्रह - . श्रीनेमिचन्द्राचार्यकृत मूल गाथायें, श्रीब्रह्मदेवसूरिकृत संस्कृतटीका और पं० जवाहरलालजी शास्त्रीकृत भाषाटीका सहित । इसमें जीव, अजीव, आदि छह द्रव्योंका स्वरूप अति स्पष्ट रीतिसे दिखाया गया है । दूसरी बार छपी है । कपड़ेकी सुन्दर जिल्द है । मूल्य २।) द्रव्यानुयोगतर्कणा - व्याकरणाचार्य पं० ठाकुरप्रसादजी शर्माकी बनाई सरल भाषाटीका । इस 'ग्रंथके . मूलकर्ता , भोजसागरने सुगमतासे मन्दबुद्धियोंके द्रव्यज्ञान होनेके लिये, .गुणपर्ययवद्र्व्यम् ” महाशास्त्र तत्त्वार्थसूत्रके इस एक सूत्रकी विस्तृत व्याख्या की है। जिसमें . इस. द्रव्य-गुण,तथा अन्य पदार्थोंका भी विशेष–विस्तृत वर्णन किया है और प्रसंगवश
SR No.010843
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorA N Upadhye
PublisherManilal Revashankar Zaveri Sheth
Publication Year1935
Total Pages595
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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