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________________ यह ग्रंथ हिन्दू यूनिवर्सिटी काशीके एम. ए. के कोर्समें, और कलकत्ता यूनिवर्सिटीके .. न्याय-मध्यमाके कोर्समें नियत है। इस प्रकार सुसम्पादित ग्रंथ अभी इने गिने ही निकले हैं। यह हमारी आत्मश्लाघा नहीं है। जो लोग देखेंगे, वह मुग्ध हुए विना न रहेंगे । ग्रन्थराज स्वदेशी कागजपर बड़ी शुद्धता और सुन्दरतापूर्वक छपा है । ऊपर कपड़ेकी मजबूत सुन्दर जिल्द बंधी हुई है। बड़े आकारके ५३६ पृष्ठ हैं । सर्वसाधारण आसानीसे खरीद सकें, इसी लिये, मूल्य सिर्फ साडेचार रु० रक्खा है । सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्र अर्थात् ‘अर्हत्सवचनसंग्रह मोक्षशास्त्र-तत्वार्थसूत्रका संस्कृतभाष्य और उसकी प्रामाणिक भाषाटीका । श्रीउमास्वातिकृत मूल सूत्र, स्वोपज्ञभाष्य ( संस्कृतटीका ) और विद्यावारिधि पं० खबचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्रीकृत भाषाटीका सहित । जैनियोंका यह परममाननीय ग्रन्थ है। इसमें जैनधर्मके सम्पूर्ण सिद्धान्त आचार्यवर्यने बड़े लाघवसे संग्रह किये है । सिद्धान्तरूपी सागरको मथके गागर (घड़े ) में भर देनेका कार्य अपूर्व कुशलतासे किया है। ऐसा कोई तत्त्व नहीं, जिसका निरूपण इसमे न हो। इस ग्रन्थको जैनसाहित्यका जीवात्मा कहना चाहिए । गहनसे गहन विषयका प्रतिपादन स्पष्टताके साथ इसके सूत्रोंमें स्वामीजीने किया है। इस ग्रंथपर आचार्य श्रीपूज्यपाद-देवनन्दिने सर्वार्थसिद्धिवृत्ति और भट्टाकलंकदेवने तत्त्वार्थराजवार्तिक श्रीविद्यानन्दिस्वामीने तत्त्वार्थश्लोकवार्त्तिक श्रीहरिभद्रसूरि और सिद्धसेनगाणि तथा अन्यान्य आचार्योकी अनेक भाष्य-संस्कृत टीकायें हैं। स्व. पं० जयचंद्रजीने स्व० पं० सदासुखजी तथा अन्य विद्वानोने इसपर अनेक भाषावचनिकाये रची है । इस ग्रंथपर वर्तमान शैलीमें-प्रचलित हिन्दीमें कोई विशद और सरल टीका · नही थी, जिसमें, तत्त्वोंका वर्णन स्पष्टताके साथ आधुनिक शैलीसे हो । इसी कमीकी पूर्तिके लिये यह टीका छपाई गई है । उपर्युक्त मुख्य मुख्य टीकाकारोंके ग्रंथोंका अध्ययन करके उनके आधारसे यह भाषाटीका तैयार की गई है। विषयको स्पष्ट करनेके लिये स्थान स्थानपर अनेक उद्धरण दिये है। जो वातें आपको सैकड़ों ग्रंथोंके स्वाध्यायसे न मालूम होंगी, वे इस अकेलेसे मालूम हो जायँगीं। विद्यार्थियोंको, विद्वानोंको और मुमुक्षुओंको इसका अध्ययन-पठन-पाठन-स्वाध्याय करके लाभ उठाना चाहिए। यह ग्रन्थ कलकत्ता यूनिवर्सिटीके न्याय-मध्यमाके कोर्समें है । ग्रंथारंभमे विस्तृत विषयमची है, जिसे ग्रंथका सार ही समझिये । इसमें दिगम्बर-श्वेताम्बर सूत्रोंका भेदप्रदर्शक कोष्टक और वर्णानुसारी सूत्रोंकी सूची भी है, जिससे बड़ी सरलता और सुभीतेसे पता लग जायगा कि कौन विषय और सूत्र कौनसे पृष्ठमें है । ग्रंथराज स्वदेशी मजबूत चिकने कागजपर बड़ी शुद्धता और सुन्दरता पूर्वक छपा है। ऊपर मजबूत कपड़ेकी सुन्दर जिल्द बंधी हुई है । इतनी सब विशपतायें होते हुए भी बड़े आकारके ४७६+२४=५०० पृष्ठोंके ग्रंथका मूल्य लागतमात्र तीन रुपया है, जो ग्रंथको देखते हुए कुछ नहीं है । मूल्य इसी लिये कम रखा है, जिससे सर्वसाधारण सुभीतेसे खरीद सकें।
SR No.010843
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorA N Upadhye
PublisherManilal Revashankar Zaveri Sheth
Publication Year1935
Total Pages595
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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