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________________ ४०.] -प्रवचनसार:शक्तिवशात् गृह्यमाणा अगृह्यमाणाश्च आ एकद्रव्यात्मकसूक्ष्मपर्यायात्परमाणोः, आ अनेकद्रव्यात्मकस्थूलपर्यायात्पृथिवीस्कन्धाच संकलस्यापि पुद्गलस्याविशेषेण विशेषगुणत्वेन विद्यन्ते । ते च मूर्तत्वादेव शेषद्रव्याणामसंभवन्तः पुद्गलमधिगमयन्ति । शब्दस्यापीन्द्रियग्राह्यत्वाद्गुणत्वं न खल्वाशङ्कनीयं, तस्य वैचित्र्यप्रपञ्चितवैश्वरूपस्याप्यनेकद्रव्यात्मकपुद्गलपर्यायत्वेनाभ्युपगम्यमानत्वात् । गुणत्वे वा न तावदमूर्तद्रव्यगुणः शब्दः गुणगुणिनोरविभक्तप्रदेशत्वेनैकवेदनवेद्यत्वादमूर्तद्रव्यस्यापि श्रवणेन्द्रियविषयत्वापत्तेः । पर्यायलक्षणेभूताः । सुहुमादो पुढवीपरियंतस्स य "पुढवी जलं च छाया चउरिंदियविसयकम्मपरमाणू । छविहभेयं भणियं पोग्गलदव्वं जिणवरेहिं" ॥ इति गाथाकथितक्रमेण परमाणुलक्षणसूक्ष्मखरूपादेः पृथ्वीस्कन्धलक्षणस्थूलखरूपपर्यन्तस्य च । तथाहि-यथानन्तज्ञानादिचतुष्टयं विशेषलक्षणभूतं यथासंभवं सर्वजीवेषु साधारणं तथा वर्णादिचतुष्टयं विशेषलक्षणभूतं यथासंभवं सर्वपुद्गलेषु साधारणम् । यथैव चानन्तज्ञानादिचतुष्टयं मुक्तजीवेऽतीन्द्रियविषयज्ञानमनुमानगम्यमागमगम्यं च, तथा शुद्धपरमाणुद्रव्ये वर्णादिचतुष्टयमप्यतीन्द्रियज्ञानविषयमनुमानगम्यमागमगम्यं च । यथा वानन्तचतुष्टयस्य संसारिजीवे रागादिस्नेहनिमित्तेन कर्मबन्धवशादशुद्धत्वं भवति तथा वर्णादिऐसे पुद्गलद्रव्यमें [वर्णरसगन्धस्पर्शाः ] रूप ५, रस ५, गंध २, स्पर्श ८ ये चार प्रकारके गुण [विद्यन्ते ] मौजूद हैं, [च] और जो [शब्दः ] शब्द है, [स] वह [ पौद्गलश्चित्रः] भाषा ध्वनि आदिके भेदसे अनेक प्रकारवाला पुद्गलका पर्याय है । भावार्थ-पुद्गलद्रव्य सूक्ष्मसूक्ष्म १, सूक्ष्म २, सूक्ष्मस्थूल ३, स्थूलसूक्ष्म ४,. स्थूल ५, स्थूलस्थूल ६ छह प्रकारका कहा गया है। उनमेंसे परमाणु सूक्ष्मसे सूक्ष्म है १, कार्माण (कर्म होने योग्य) वर्गणा सूक्ष्म हैं २, स्पर्श, रस, गंध, शब्द ये सूक्ष्मस्थूल हैं, क्योंकि नेत्र-इंद्रियसे नहीं देखे जाते, इसलिये सूक्ष्म हैं, तथा चार इंद्रियोंसे जाने जाते हैं, इसलिये स्थूल भी हैं ३, छाया (परछाँई) स्थूलसूक्ष्म है, क्योंकि नेत्रसे' देखनेमें आती है, इसलिये स्थूल है, तथा हाथसे ग्रहण नहीं की जाती, इसलिये सूक्ष्म भी है ४, जल, तैल आदिक स्थूल हैं, क्योंकि छेदन भेदन करनेसे फिर उसी समय मिल जाते हैं ६, पृथिवी, पर्वत, काठ वगैरः स्थूलस्थूल हैं । इस प्रकार भेदोंसे पुद्गल द्रव्य अनेक प्रकार है। ये स्पर्शादि चारों गुण इन्द्रियोंसे जाने जाते हैं। यहाँपर कोई प्रश्न करे, कि परमाणु कार्मणवर्गणादिकमें भी ये चार गुण हैं, वे अत्यन्त सूक्ष्मरूपसे वहाँ रहने पर इन्द्रियोंसे प्रत्यक्ष ही नहीं हो सकते, तो इनको इन्द्रिय-ग्राह्य किस तरह कहते हो ? इसका समाधान यह है, कि परमाणु आदि पुद्गल यद्यपि इन्द्रिय-प्रत्यक्ष नहीं हैं, तो भी उनमें इंद्रिय ग्रहण योग्य शक्ति अवश्य मौजूद है, जव स्कंधके संबंध होनेसे स्थूलपना धारण करते हैं, तव इंद्रियोंसे प्रत्यक्ष नियमकर होते हैं । इस कारण व्यक्ति-शक्तिकी अपेक्षा ग्रहण किये जावे, अथवा नहीं किये जावें, परंतु इन्द्रिय-ग्रहण योग्य अवश्य हैं। सभी छह प्रकारके प्र. २४
SR No.010843
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorA N Upadhye
PublisherManilal Revashankar Zaveri Sheth
Publication Year1935
Total Pages595
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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