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________________ रायचन्द्र जैनशास्त्रमाला अथोत्पादादित्रयं सर्वद्रव्यसाधारणत्वेन शुद्धात्मनोऽप्यवश्यं भवतीति विभावयति उप्पादो य विणासो विजदि सव्वस्स अट्ठजादस्स । पजाएण दु केवि अट्ठो खलु होदि सम्भूदो ॥ १८ ॥ उत्पादश्च विनाशो विद्यते सर्वस्यार्थजातस्य । पर्यायेण तु केनाप्यर्थः खलु भवति सद्भूतः ॥ १८ ॥ यथाहि जात्यजाम्बूनदस्याङ्गदपर्यायेणोत्पत्तिर्दृष्टा । पूर्वव्यवस्थिताङ्गुलीयकादिपर्यायेण त्यत्वेऽपि पर्यायार्थिकनयेनोत्पादव्ययभौव्यत्रयं संभवतीति ॥ १७ ॥ अथोत्पादादित्रयं यथा सुवर्णादिमूर्तपदार्थेषु दृश्यते तथैवामूर्तेऽपि सिद्धखरूपे विज्ञेयं पदार्थत्वादिति निरूपयति — उप्पादो य विणासो विज्जदि सव्वस्स अट्ठजादस्स उत्पादश्च विनाशश्च विद्यते तावत्सर्वस्यार्थ - जातस्य पदार्थसमूहस्य । केन कृत्वा । पज्जाएण दु केणवि पर्यायेण तु केनापि विवक्षिते - नार्थव्यञ्जनरूपेण खभावविभावरूपेण वा । स चार्थः किं विशिष्टः । अट्ठो खलु होदि सम्भूदो अर्थः खलु स्फुटं सत्ताभूतः सत्ताया अमिनो भवतीऽति । तथाहि — सुवर्णगोरसमृत्तिकापुरुषादिमूर्तपदार्थेषु यथोत्पादादित्रयं लोके प्रसिद्धं तथैवामूर्तेऽपि मुक्तजीवे । यद्यपि शुद्धात्मरुचिपरिच्छित्तिनिश्चलानुभूतिलक्षणस्य संसाराबसानोत्पन्नकारण समयसारपर्यायस्य विनाशो भ- ' " २४ [ अ० १, गा० १.८ - * नाश हुआ, फिर वह नहीं उत्पन्न होता है, इससे तात्पर्य यह निकला, कि जो इस भगवान् - ( ज्ञानवान ) आत्माके उत्पाद है, वह विनाश रहित हैं, और विनाश उत्पत्ति रहित है, तथा अपने सिद्धिस्वरूप कर ध्रुव (नित्य) है, अर्थात् जो यह आत्मा पहले अशुद्ध हालत में था, वही आत्मा अब शुद्धदशामें मौजूद है, इसकारण ध्रुव है। [तस्यैव पुनः स्थितिसंभवनाशसमवायः ] फिर उसी आत्माके धौव्य उत्पत्ति नाश इन तीनों का मिलाप एक ही समय में मौजूद है, क्योंकि यह भगवान् एक ही वक्त तीनों स्वरूप परिणमता है, अर्थात् जिस समय शुद्ध पर्यायकी उत्पत्ति है, उसी वक्त अंशुद्ध पर्यायका नाश है, और उसी कालमें द्रव्यपनेसे ध्रुव है, दूसरे समयकी जरूरत ही नहीं है, यह, अभिप्राय हुआ, कि द्रव्यार्थिकनयसे आत्मा नित्य होनेपर भी पर्यायार्थिक विनाश, धौव्य, इन तीनों सहित ही है ॥ १७ ॥ आगे उत्पाद आणि है, इस कारण सब द्रव्यों में है, तो फिर आत्मामें भी अवश्य हैं, ' [ केनापि ] किसी एक [ पर्यायेण ] पर्यायसे [सर्वस्य पदार्थोकी [ उत्पादः ] उत्पत्ति [ च विनाशः ] तथा नाश [ [तु] लेकिन [ख] निश्चयसे [ अर्थः ] पदार्थ [ सद्भूतः ] है । भावार्थ - पदार्थका अस्तित्व ( होना ) सत्तागुणसे है, और धौव्यस्वरूप है, सो किसी पर्यायसे उत्पाद तथा किसी पर्यायसे पाव सहि र करता
SR No.010843
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorA N Upadhye
PublisherManilal Revashankar Zaveri Sheth
Publication Year1935
Total Pages595
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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