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________________ Bedar आभ्यंतर परिणाम अवलोकन- संस्मरणपोथो १ तोर्थंकर में अतिशयता क्या है ? विशेष हेतुः क्या है ? यदि जिनसम्मतः केवलज्ञानको लोकालोकज्ञायक' मानें तो उस केवलज्ञानमें आहार, निहार, विहार आदि क्रियाएँ किस तरह हो सकती हैं ? 2 • वर्तमान में उसकी इस क्षेत्र में अप्राप्तिका हेतु क्या है? अन एक वाई ६९ Lafage pay no to bed a plavoy i j pa na mimi 51... श्रुत कुछ भी है ? क्या है ? अवधि, मनःपर्याय परमावधि, - केवल, ८२७ C# [ संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ १५४ ] .... ७०. ...[. संस्मरण- पोथी १, पृष्ठ १५५ ] परमावधिज्ञान उत्पन्न होनेके बाद केवलज्ञान उत्पन्न होता है, यह रहस्य अनुप्रेक्षा करने ***** योग्य है । अनादि अनंत कालका, अनंत ऐसे अलोकका ? गणितसे अतीत अथवा असंख्यातसे पर ऐसे जीवसमूह, परमाणु समूह अनंत होनेपर भी अनंतताका साक्षात्कार हो वह गणितातीतता होनेपर भी किस तरह साक्षात् अनंतता मालूम हो ? इस विरोधका परिहार उपर्युक्त रहस्यसे होने योग्य समझमें आता है । ... और केवलज्ञान निर्विकल्प है, उसमें उपयोगका प्रयोग नहीं करना पड़ता । सहज उपयोग वह ज्ञान है; यह रहस्य भी अनुप्रेक्षा करने योग्य है । 3 क्योंकि प्रथम सिद्ध कौन है ? - प्रथम जीवपर्याय कौनसा है ? प्रथम परमाणु-पर्याय क्या है ? यह केवलज्ञानगोचर है परन्तु अनादि ही मालूम होता है; अर्थात् केवलज्ञान उसके आदिको नहीं पाता, और केवलज्ञानसे कुछ छिपा हुआ नहीं है, ये दो बातें परस्पर विरोधी हैं, इसके समाधानका रास्ता परमावधिकी अनुप्रेक्षासे तथा सहज उपयोगकी अनुप्रेक्षा से समझ में आने योग्य दिखायी देता है ! - ७१ [ संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ १५६ ] किस प्रकारसे है ? जानने योग्य है ? जाननेका फल क्या है ? बंधा हेतु क्या है ? पुद्गलनिमित्त बंध या जीवके दोषसे वंध ? जिस प्रकारसे माने उस प्रकारसे बंध दूर नहीं किया जा सकता ऐसा सिद्ध होता है । इसलिये मोक्षपदको हानि होती है । उसका नास्तित्व सिद्ध होता है । अमूर्तता यह कुछ वस्तुता है या अवस्तुता ? अता यदि वस्तुता है तो वह कुछ महत्त्ववान है या नहीं ? [ संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ १५७ ] [ संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ १५८ ]
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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